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पुस्तक:सच्ची साथी

सुखमिला अग्रवाल ‘भूमिजा’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

पाना जो चाहो साथ सुहाना,
पुस्तक को तुम मीत बनाना
पाना जो चाहो साथ सुहाना,
पुस्तक को तुम मीत बनाना…।

जब-जब तुमको दुनिया छलेगी,
पुस्तक तेरा मीत बनेगी
राह में आए संकट कोई,
पुस्तक ही फिर हल ढूंढेंगी।

सद आचार शील सिखाएं,
जीवन का दर्शन समझाए
कर दे उजाला जीवन पथ पर,
मानवता का पाठ पढ़ाए।

समग्र विश्व का ज्ञान समाया,
पुस्तक से ही जग चल पाया
धरती अम्बर पृथ्वी तारे
हमको पुस्तक ने ही दिखाया।

चोर चुरा ना सके कभी भी,
घर में डाका डल जाए तभी भी
पुस्तक साथ निभाती हरदम,
कोई नाता टूटे फिर भी।

समझे मन का हाल है सारा,
इनसे ही है मन उजियारा।
दिन-दिन बढ़ता ऐसा धन ये,
मलिन मन हो अनुपम न्यारा॥

परिचय-सुखमिला अग्रवाल का उपनाम ‘भूमिजा’ है। आपका जन्म स्थान जयपुर (राजस्थान) एवं तारीख २१ जुलाई १९६५ है। वर्तमान में मुम्बई स्थित बोरीवली ईस्ट(महाराष्ट्र)में निवास,जबकि स्थाई पता जयपुर ही है। आपको हिंदी,मारवाड़ी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। हिंदी साहित्य व समाज विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ ही संगीत में मध्यमा आदि की शिक्षा प्राप्त की है। नि:शुल्क अभिरुचि कक्षाएं चला कर पढ़ाने के अलावा महिलाओं को जागृत करने के कार्य में भी आप सतत सक्रियता से कार्यरत हैं। लेखन विधा-काव्य (गीत,छंद आदि) एवं लेख,संस्मरण आदि है। १० साँझा संग्रह में इनकी रचनाएँ हैं तो देश के विभिन्न स्थलों से समाचार पत्रों में भी स्थान मिलता रहता है। लगभग २५० सरकारी,गैर सरकारी संस्थाओं से आपको सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं। ब्लॉग पर भी सक्रियता है,तो विशेष उपलब्धि प्रकाशित रचनाओं पर प्राप्त प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ना व अव्यक्त खुशी मिलना है। सुखमिला अग्रवाल की लेखनी का उद्देश्य-सर्वप्रथम आत्म संतुष्टि तो दूसरा-विलुप्त होती जा रही हमारी संस्कृति से आने वाली पीढ़ी को परिचित करवाना,महिलाओं को जागृत करना तथा उदाहरण प्रस्तुत करना है। इनके पसंदीदा लेखक सभी छायावादी रचनाकार हैं,तो प्रेरणापुंज-आदर्श स्वतंत्रता सेनानी नानी,पिता एवं बड़े भाई हैं।
हिंदी के प्रति विचार-‘हिंदी मेरी माँ है,मित्र है,संरक्षक है,मेरा दिल,दिमाग,आत्मा है।’

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