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`पत्र तुम्हारे लिए` लुप्तप्राय विधा हेतु एक सशक्त प्रयास

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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आकर्षक आवरण वह भी विषयवस्तु के अनुसार `पत्र तुम्हारे लिए` पुस्तक है। साहित्य जगत उसमें समाज के सन्देश के आदान-प्रदान वाली कभी लोकप्रिय रहने वाली विधा जो आज लुप्तप्राय है। पत्र साहित्य पर केन्द्रित इस कृति का सम्पादन डॉ. विमला भंडारी ने किया है। कभी दूर देश से आने वाले पत्रों की लम्बी प्रतीक्षा होती थी। डाकिये को दूर से आता देखकर पत्र को लेकर अनेक प्रकार की जिज्ञासा व शंकाएं मन में आ जाती थीं,पर आज की स्थिति में मोबाइल,इण्टरनेट,ई-मेल,व्हाटसप आदि अधुनातन संचार साधनों में पत्र खो गये हैं। पोस्टकार्ड-अर्न्तदेशीय को तो आज के बच्चे जानते तक नहीं। आजकल पत्र विविध परीक्षाओं-विद्यालयों में ही लिखे जा रहे हैं। इसकी एक विधा निमंत्रण-पत्र विवशता में जीवित है। ऐसे में यदि कोई पत्र हाथ आ जाता है तो उसकी बात ही न पूछोl पत्रों के लेखन के अलावा महत्व-उपयोगिता की बात करें तो नेहरू जी के इन्दिरा के नाम पत्र,गोविन्द बल्लभ पन्त के अपने बच्चों को परीक्षा समय के लिए पत्र गांधी शास्त्री जी के पत्र साधारण से दिखकर भी असाधारण होते थे।

लुप्त होती इस विधा पर देशभर में सम्पर्क अभियान आरम्भ कर ९४ प्रविष्टियों में से पुस्तक हेतु चयन करवाना,उसके बाद `देवपुत्र` के सम्पादक विकास दवे व वरिष्ठ लेखिका शीला पांडे ने मूल्यांकन का दायित्व जिस तरह निभाया,वह प्रशंसनीय है। उसके परिणाम स्वरूप ३७ पत्रों से युक्त पत्र साहित्य का यह गुलदस्ता बालसाहित्य जगत के सामने है। पत्र लेखकों ने पिता-माता,भाई-बहिन,मित्र,शिष्य,दादा,नाना-नानी तथा बुआ आदि के रूप में अपने पत्रों में न केवल पत्र विधा का महत्व संकेत संकेत में रेखांकित किया,अपितु वर्तमान समाज व देश के लिए आवश्यक सभी विषयों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से स्पर्श कर अपनी अगली पीढ़ियों को सन्देश दिया है। उसकी अधिकांश गुत्थियां सुलझाई हैं। सीधे-सीधे जो बात अगली पीढ़ी से नहीं हो सकती,वह भी पत्रों में दिखी है,जो उसके संभलने,भटकाव से बचने के लिए बहुत आवश्यक है। डॉ. भंडारी के शब्दों में कहूं तो इन पत्रों में प्यार-दुलार अपनापन विशिष्टता दुनिया की ऊँच-नीच की समझ ज्ञान-विज्ञान आदत व्यवहार जीवन की उलझन-सुलझाने की ताकत है। तुम्हें जीवन के हर मोड़ पर कुछ खास देने की क्षमता रखते हैं ये सारे पत्र।

बात चाहें मातृभाषा के महत्व की हो,छुट्टियों का सदुपयोग,रिश्तों की बात उत्साहवर्धन निराशा में आशा का संचार छात्रावास का जीवन स्वस्थता पर्यटन जिज्ञासाएं जानकारी प्रेरक व्यक्तित्व बाल मनोदशा परीक्षा का भय,धैर्य का महत्व आदि आदि सभी पर पत्र संकलित हैं। देशभर के सैंतीस पत्र लेखकों में कोई पत्र कमतर नहीं आंका जा सकताl सब एक से बढ़कर एक हैं। १५ पत्र पुरस्कार प्राप्त हैं। बचे २२ पत्र `तुम्हारे लिए` शीर्षक से अपनी पठनीयता भाषायी प्रवाह रोचकता से सभी के लिए खास हैं और यह खासियत ही डॉ. भंडारी के इस प्रयास को सार्थकता देकर पत्र साहित्य विधा के विकास के नये आयाम खोलेगीl भूमिका लेखक सुधा जौहरी के शब्दों में यह प्रयास पत्रलेखन को पुनर्जीवित करने में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।

सजिल्द १३६ पृष्ठीय इस पुस्तक का प्रकाशन ग्रन्थ विकास जयपुर ने किया है। अपनी उपयोगिता त्रुटिरहित प्रस्तुतिकरण के यह पत्र किसी बालक किशोर या युवा के जीवन की दिशा बदल दें,तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

परिचय–शशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है

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