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दलों की सत्ता लोलुपता और नैतिकता को तिलांजलि

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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नैतिकता तो पहले ही राजनीति में गायब होती जा रही थी,अब सत्तालोलुपता में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में प्रचार में मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी गईं। वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर का चुनावी सभा में तेज़ आवाज़ में ललकारना-‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’ कितना गलत था। सांसद प्रवेश वर्मा ने सभी मुस्लिमों को ही एक तरह से शाहीन बाग का हवाला दे कर दुष्कर्मी कह दिया,केजरीवाल को आतंकवादी बता दिया। कपिल मिश्रा ने चुनाव को भारत-पाकिस्तान का युद्ध बता दिया। अमित शाह का अहंकार से भरा बड़बोलापन चुभन के साथ विद्रूपता ही पैदा करता है और कुछ नहीं। जो भाजपा नैतिकता की दुहाई देते थकती नहीं थीं,उन्हीं के नेताओं पर बार-बार प्रतिबंध लगा। योगी जी ने प्रचार में हिन्दू-मुस्लिम को अलग-अलग खेमे में बांट कर मर्यादा तोड़ी, संजय सिंह ने भाजपा पर हिंसा का आरोप लगाया तो चुनाव आयोग ने नोटिस भेजा। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने केजरीवाल को बन्दर,मदारी कह दिया,राहुल गांधी बेरोजगारी को ले कर बोल उठे-“यदि ऐसा रहा तो छह महीने बाद युवा मोदी को डंडे मारेंगे।” प्रधानमंत्री भी कई बार कटाक्ष करते हुए पद की सारी सीमाएं ही पार कर जाते हैं।
दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर बहस के स्तर पर शर्मिंदगी ही होती है व लोकतंत्र के मूल्यों के हनन पर हैरानी। लगता है जैसे राजनीति के प्रांगण में तो सरस्वती पूरी तरह ही लुप्त हो गई है। राजनीति में नैतिकता हनन का नँगा नाच तो कई बार देखने को मिला,पर महाराष्ट्र की राजनीति ने उसका अंत कर दिया। भाजपा अपने को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ कहती थी,अब यह नकाब भी उसने उतार दिया। देखा जाए तो सब पार्टियां निर्वस्त्र हो कर अवसरवादी साबित हो गईं, यहाँ अब कोई भी दूध का धुला नहीं।
तारों की छांव में राष्ट्रपति शासन हटा,सूर्योदय होते ही शपथग्रहण भाजपा का हो गया,कुछ घंटे पहले ही तीन दलों की सहमति की खबर थी। क्या ही अच्छा होता,हड़बड़ी में इस तरह की गलती कर तमाशा बनने की जगह भाजपा इनको सरकार बनाने देती व कुछ समय इंतज़ार कर लेती।
अब राज्यपालों की भूमिका सरकारी पिट्ठू जैसी हो गई है। भाजपा सत्ता की भूखी हो गई है,येन-केन प्रकारेण पूरे भारत में छा जाना चाहती है। जिस जेजेपी को भाजपा ज़मानत ज़ब्त पार्टी कहती थी,उसी के साथ सरकार बना ली।
पीडीपी के साथ भाजपा का कश्मीर में बेमेल गठबंधन चला नहीं ।भाजपा के खिलाफ राजद के साथ चुनाव लड़ फिर उसको ही धोखा दे कर नीतीश ने भाजपा से मिल कर सरकार बना ली। सत्ता के लिय २२ दलों की वाजपेयी सरकार में राम मंदिर,धारा ३७०,समान नागरिक संहिता के मुद्दों को तिलांजलि दे दी गई थी।अब महाराष्ट्र में तीन दल सामान्य कार्यक्रम पर एकजुट हो गए तो क्या गलत हो गया।बाल ठाकरे की शिव सेना के उत्थान से ही भाजपा ने पैर पसारे थे,बड़े भाई की भूमिका में शिव सेना थी,पर आज भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गई। निश्चय ही अब राजनीति का धर्म ही नहीं रहा।
अब तो भाजपा भी सब दलों की तरह ही हो गई है। यह भाजपा के अहंकार की पराकाष्ठा ही है। महंगाई,बेरोजगारी,छंटनी के नाम पर त्राहि-त्राहि मची है,प्रचंड बहुमत के मद में डूबी भाजपा सरकार को परवाह ही नहीं है। वित्तमंत्री जी कहती हैं,-मंदी है ही नहीं। अब जनता के हाथ में सहने के सिवा और क्या है ? अपनी कमियों की भी मार्केटिंग भाजपा खूबियों की तरह कर जनता को भ्रमित करने में सिद्धहस्त हो गई है। अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग बजाती विपक्षी पार्टियां यदि एकजुट न हुईं तो जनता के सामने विकल्प ही खत्म हो जाएंगे। अच्छे सुदृढ़ प्रजातन्त्र में विपक्ष भी अच्छा,सुदृढ़ होना चाहिए,अन्यथा निरंकुशता को ही प्रोत्साहन मिलता है,मिलता रहेगा,ऐसे में भ्रष्टाचार स्वंयमेव ही बढ़ेगा।
राजनीति देखिए कि घोर भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे कितने ही सांसद,विधायक भाजपा रूपी गंगा में आते ही पवित्र व निर्दोष दिखाई देते हैं। चुनाव के समय जिसको जेल भेजने की हुंकार भरी हो,उसी के साथ सरकार बना लेते हैं। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले बड़े बड़े भ्रष्टाचारियों के साथ हाथ मिला लेते हैं।
महात्मा गांधी तो बस एक पुतला है,जिनके आदर्श के नाम पर चुनाव जीतते हैं। बाद में उन्हीं के आदर्शों की धज्जियां उड़ा देते हैं।होटल-होटल का खेल शुरू हो जाता है। लोकतंत्र की जीत या हत्या,अपनी सुविधानुसार घड़े शब्द बन जाते हैं। मतदाता बेचारा सब-कुछ देखते हुए भी सब कुछ सहने को मजबूर है। अब राजनीति में सत्ता का मोह-स्वार्थ,पद का लालच,मौकापरस्ती जैसे गुणों द्वारा सत्ता प्राप्ति ही अंतिम मंजिल है। लक्ष्य को हासिल करने में अब विचारधारा ,छवि,नैतिकता का कोई मूल्य नहीं।राजनीतिक दलों की निर्लज्जता,नैतिकता के हनन से आम जनता तो शर्मिंदगी महसूस करने के अलावा और करे भी क्या ? आप भी कसम ले लीजिए,अब राजनीति में नैतिकता की आशा सभी दलों की सत्ता लोलुपता को देखते हुए कभी भी नहीं करेंगे,क्योंकि अब
राजनीति नित-नए ढंग की परिभाषा गढ़ रही है।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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