डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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श्री अटल बिहारी वाजपेई:कवि व्यक्तित्व : स्पर्धा विशेष……….
अटल जी थे अटल,
अपनी हर बात पर अटल
न कभी किया
सिद्धांतों से समझौताl
न दिया कभी देश की,
जनता को धोखा
उन्होंने राजनीति की,
देश की सेवा के लिए
कभी नहीं जिए,
वे अपने लिएl
सादगी की मूर्ति थे अटल,
लोकप्रिय वक्ता थे अटल
थे अविवाहित,
अपना जीवन किया
राष्ट्र को समर्पणl
ऐसे अटल जी को हम,
करते हैं अश्रुसुमन अर्पण
विरोधियों से भी,
रखते थे केवल
सिद्धांतों का विरोध,
कभी नहीं डालते थे
उनके कार्यों में अवरोधl
हँसकर बोलना और,
हाजिर जवाबी
यही थी उनके,
व्यक्तित्व की खूबीl
राजनीति के दल-दल में रहकर,
भी कमल
जैसे खिले थे
चारों तरफ फैली थी गंदगी,
पर स्वयं स्वच्छता से मिले थेl
सादा जीवन उच्च विचार,
यही था उनके जीवन का आधार
नहीं था उनका अपना परिवार,
पर सारा देश था उनका परिवारl
क्या इस धरा पर,
अन्य कोई अटल आएगा ?
अटल जी का स्थान,
रिक्त रहेगा
शायद कोई नहीं…
भर पाएगाll
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”