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हमेशा अपनी भाषा की उन्नति के लिए कार्य करना होगा

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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हिंदी दिवस विशेष…..

१४ सितम्बर को हमारे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। १९४७ में जब भारत अंग्रेजी हुकूमत से आज़ाद हुआ तो,देश के सामने एक बड़ा सवाल भाषा को लेकर था, क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएँ और बोलियां बोली जाती थी। आज़ाद भारत का संविधान २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ,लेकिन भारत की कौन-सी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में चुना जाए,ये मुद्दा बड़ा अहम था। १४ सितम्बर १९४९ को संविधान सभा में एक मत से यह निर्णय लिया गया कि,हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी,साथ ही इसी दिन हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लम्बा संघर्ष करने वाले पुरोधा व्योहार राजेन्द्र सिंह का जन्मदिन रहता है,और इसी दिन इस भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया। हजारी प्रसाद द्विवेदी,काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त और सेठ गोविन्द दास के प्रयासों की बदौलत भारत गणराज्य की २ भाषाओं में हिंदी को अपनाया गयाl १९१८ के हिंदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा बताते हुए राष्ट्रभाषा बनाने की पहल की थी।
संविधान के अनुच्छेद ३४३ के तहत देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी(१२० से अधिक भाषाओं में प्रयुक्त होने वाली लिपि) को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया। १४ सितम्बर १९५३ को पहली बार हिंदी दिवस मनाया गया। इस दिन विद्यालयों-महाविद्यालयों-कार्यालयों में हिंदी के विकास के लिए अनेक कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं,लेकिन जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला तो ग़ैर हिंदीभाषी राज्य ख़ास कर दक्षिण भारत के लोगों ने इसका विरोध किया,फलस्वरूप अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।
आज के समय में जिस तरह हिंदी भाषा लोगों के बीच से ग़ायब होती जा रही है और उसके स्थान पर अंग्रेजी भाषा अपना प्रभुत्व जमाती जा रही है,यह हालात चिंताजनक हैं। आप भाषा ज्ञान के लिए भले ही अंग्रेजी पढ़ें, लेकिन बोल-चाल,व्यवहार में हिंदी का ही उपयोग करें। यदि हिंदी भाषा को सँजोए रखना है तो हमें हिंदी का प्रचार-प्रसार करना होगा,सरकारी काम-काज को हिंदी में करने के लिए बढ़ावा देना होगा। हिंदी के विकास के लिए काम करना होंगेl हम अपने घरों में हिंदी भाषा बोलें और बच्चों को हिंदी के प्रति जागरूक बनाएं। केवल १४ सितम्बर को हिंदी दिवस के दिन हिंदी प्रेम जगाने से काम नहीं चलेगा। केवल एक दिन बड़े-बड़े कार्यक्रम व प्रतियोगिता कराना भर काफी नहीं है,हमें हमेशा अपनी भाषा की उन्नति के लिए कार्य करना होगा।
“आओ हम सब मिलकर हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाएंl”

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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