किसी और का हूँ
वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरीकुशीनगर(उत्तर प्रदेश) ***************************************************** मुझे यूँ न देखो कुँवारा नहीं हूँ,किसी और का हूँ तुम्हारा नहीं हूँ। न छत पे बुलाओ मुझे रात में तुम,मैं इंसान हूँ चाँद-तारा नहीं…
वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरीकुशीनगर(उत्तर प्रदेश) ***************************************************** मुझे यूँ न देखो कुँवारा नहीं हूँ,किसी और का हूँ तुम्हारा नहीं हूँ। न छत पे बुलाओ मुझे रात में तुम,मैं इंसान हूँ चाँद-तारा नहीं…
प्रियंका सौरभहिसार(हरियाणा) ************************************************** जयपुर और आगरा के लिए दिल्ली के राजमार्गों की नाकाबंदी के लिए किसान संगठनों के आह्वान के बाद पूरे भारत में तनाव बढ़ गया है। ३ विवादास्पद…
मुंबई(महाराष्ट्र)l दिल्ली मेट्रो द्वारा हिंदी की उपेक्षा करने पर इसका विरोध करते हुए पत्र लिखा गया हैl इसमे जनता कि ओर से दोनों स्टेशनों का नाम फौरन हिंदी अथवा किसी…
रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************************ ख़याली पुलाव बनाना अच्छा नहीं होता,यूँ ही दिल बहलाना अच्छा नहीं होता।है रंजिशें दिल में तो छुपाकर रखो-ग़मों को बतलाना अच्छा नहीं होता। दिल का दर्द तू महसूस…
योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)पटना (बिहार)************************************************** भीड़ बनता हुआ आदमी-भीड़ में खोता हुआ आदमी;भीड़ की नीड़ में बैठा हुआ-भीड़ कोसता हुआ आदमी। आदमी बनता चिंगारी कभी-राख की ढेर की सवारी…
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) *********************************************** जग का पूरा कर सफ़र,होना तय प्रस्थान।बंदे जीना पर यहां,जी भर यह ले ठान॥ लाएगा अंतिम सफ़र,जब आएगा काल।पर जी लें यदि ज़िन्दगी,ना हो तनिक…
डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************** चला राष्ट्र पथ निर्माणक बन,नयी प्रगति नित शुभ शान्ति चमनआगत पथप्रदर्शक बन पाऊँ,मानक साथी हाथ बढ़ाना। कठिन डगर है जीवन पथ यह,विविध विघ्न आहत…
डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’इन्दौर(मध्यप्रदेश)********************************************* नहीं लिख पाई बहुत बेहतर,आपके व्यक्तित्व पर कोई कविता लेख,कहानीपर हर पल मेरी यादों में रखी है मैंने,आपकी चिर-परिचित मुस्कान।वो मेरे बचपन के दिन,काला टीका,वो फ्रॉक…
अमल श्रीवास्तव बिलासपुर(छत्तीसगढ़) ***************************************************** कल-कल करते,झरते-झरने,कितना मन को भाते हैं।कलरव करते नभ में पक्षी,सुन्दर तान सुनाते हैं॥ कितनी धरा मनोरम लगती,इंद्रधनुष के बनने से,मिट्टी की खुशबू प्रिय लगती,रिमझिम बूँदें गिरने से॥…
श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* अब मैं हार गई हूँ चलते-चलते,उसे ढूंढ नहीं पाई चलते-चलतेl जिधर देखती हूँ उधर रेत ही रेत है,गया किस राह,कुछ नहीं संकेत हैl दिल मेरा,चिराग जैसा…