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साथी हाथ बढ़ाना

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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चला राष्ट्र पथ निर्माणक बन,
नयी प्रगति नित शुभ शान्ति चमन
आगत पथप्रदर्शक बन पाऊँ,
मानक साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन डगर है जीवन पथ यह,
विविध विघ्न आहत दुर्जन पथ
ख़ुद रथी सार्थवाह बन जाऊँ,
रनिवासर साथी हाथ बढ़ाना।

नीति-प्रीति रथ चढ़ यायावर,
विश्वास स्वयं बढ़ूँ ध्येय पथ
मानस साहस धैर्य बढ़ाऊँ,
सम्बल साथी हाथ बढ़ाना।

बड़ा विकट है संघर्षक पथ,
दुर्गम कँटिल पाषाण जटिल तम
सर्वदा सच राह चल पाऊँ,
बस तुम साथी हाथ बढ़ाना।

लिपटा छल बल झूठ लेप जग,
घृणा द्वेष लिप्सा कामुक रग
कोप मोह से स्वयं बचाऊँ,
बढ़ नित साथी हाथ बढ़ाना।

राष्ट्र धर्म रत भक्ति सघन मन,
भारत माँ दर बलिदानी बन
वसुधा जीवन दीप जलाऊँ,
ऐसा साथी हाथ बढ़ाना।

अमर शहीदों के नमन चरण रज,
जयगान हिन्द गा तिरंग वतन
आन सम्मान शान रख पाऊँ,
अविरत साथी हाथ बढ़ाना।

मानवीय नैतिक पथ मूलक,
पलभर खुशियाँ मुस्कान अधर
नित परहित सेवन कर पाऊँ,
बस तुम साथी हाथ बढ़ाना।

तन-मन-धन सीमान्त वतन,
अरमान राष्ट्र बलिदान यतन
हर सैनिक को शीश झुकाऊँ,
तुम नित साथी हाथ बढ़ाना।

सदा पीड़ित रह कृषक भूमि पर,
हरित भरित भू कर निशिवासर
मैं उन सबका कर्ज चुकाऊँ,
तुम नित साथी हाथ बढ़ाना।

जाति-धर्म नफ़रत से उठकर,
समरसता सद्भावन रथ पर
नव अभिलाष रश्मि बन पाऊँ,
प्रेरक साथी साथ निभाना।

लूट-पाट दुष्कर्म पटा जग,
नारी का अपमान करे नर
बेटी निर्भय सबल बनाऊँ,
सब मिल साथी हाथ बढ़ाना।

सजग सफल जीवन सुखमय पल,
फैले खुशियाँ धन यश वैभव।
नित अरुणिम प्रभात बन पाऊँ,
बन पथ साथी हाथ बढ़ाना॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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