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पंजाब के कृषि कानून से दलालों की बल्ले-बल्ले

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस दल की सरकार द्वारा केन्द्रीय कृषि कानूनों के विरोध में पारित अधिनियमों को देख पंचतंत्र की उस कहानी का स्मरण हो उठता है, जिसमें मूर्ख सेवक राजा की नाक से जिद्दी मक्खी को उड़ाने के लिए तलवार से वार करता है,मक्खी उड़ जाती है और बेचारा राजा सूर्पनखा की श्रेणी में आ जाता है। राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के साथ-साथ विपक्षी दल जिनमें आम आदमी पार्टी व शिरोमणि अकाली दल बादल ने किसानों के हितों की रक्षा के नाम पर उनको बर्बादी के मार्ग पर धकेल दिया है। कहने को तो कांग्रेस सरकार ने यह कानून किसानों के हित में बनाए हैं, परंतु इनसे बल्ले-बल्ले दलालों व बिचौलियों की होती दिख रही है। इन कानूनों के अनुसार,फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने पर आरोपी को सजा तो मिल सकेगी,परंतु राज्य सरकार और निजी कम्पनी फसलें खरीदने को बाध्य नहीं होंगी। इसके बाद शुरू होगा किसानों के शोषण का सिलसिला। कानून के अनुसार,गेहूं व धान की फसलों की तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री सुनिश्चित की है,परंतु राज्य में पैदा होने वाली २३ अन्य फसलों को इस सुविधा से बाहर रखा गया है। राज्य सरकार द्वारा बिना सोच-विचार किए पारित इन कानूनों ने पंजाब की कृषि व किसानों को पतन के मार्ग पर डाल दिया है।
ये कृषि विधेयक हाल ही में केन्द्र सरकार की ओर से लाए गए ३ नए कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करने के लिए लाए गए हैं। जिन ३ कृषि कानूनों को खारिज किया गया,वे-कृषि उत्पाद,व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून २०२०, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार कानून २०२० और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून २०२० हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इन कानूनों को लेकर एक महीने से किसानों का विरोध-प्रदर्शन चल रहा है।
अब पंजाब विधानसभा में पारित प्रस्तावों का मुख्य प्रावधान है-न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीद को गैरकानूनी घोषित करना। बड़े पैमाने पर किसान संगठनों की भी यही मांग थी,पर इन कानूनों में यह आश्वासन नहीं है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करेगी। अगर पंजाब द्वारा पारित कानून अपने वर्तमान रूप में राष्ट्रपति की अनुमति के बाद लागू हो भी जाते हैं, तो इससे यह सुनिश्चित नहीं होगा कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले,बल्कि कानून का कड़ाई से पालन होता है तो काफी सारे किसानों की फसल बिकेगी ही नहीं। व्यापारी इस बात के लिए तो बाध्य होगा कि वह किसान की उपज खरीदे तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर न खरीदेl वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर ही सही किसान की फसल बिक तो जाती है। वैसे भी,केन्द्र सरकार का आँकड़ा है कि देश में केवल ६ प्रतिशत फसल ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकती है और इसमें भी ८६ प्रतिशत हिस्सा केवल पंजाब और हरियाणा का है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर केवल सरकार ही खरीद करती है,व्यापारी तो अपना-नफा नुकसान देख कर भाव लगाता है। इससे किसानों की गर्दन पूरी तरह निजी व्यापारियों के हाथों में आ जाएगी। कुल मिलाकर इसका वही हश्र होने वाला है जो मान्यता प्राप्त निजी शालाओं और महाविद्यालयों में होता है। कर्मचारी हस्ताक्षर तो कानूनी रूप से देय वेतन पर करता है,पर वास्तव में उससे वेतन मिलता बहुत कम है। अब किसान के साथ भी ऐसा होने का मार्ग खुल चुका है।
यह किसानों के साथ कितनी बड़ी राजनीतिक ठगी है कि,सरकार फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात तो करती है परंतु खरीद सुनिश्चित हो इस बात को अव्यवहारिक मानती है। विधानसभा में बहस के दौरान सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का आश्वासन देने की मांग पर न केवल पंजाब सरकार ने इसको खारिज कर दिया,अपितु इसको अव्यावहारिक भी बताया। जब सरकार ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के आश्वासन को अव्यावहारिक मानती है तो फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीदी पर सजा के प्रावधान का क्या अर्थ रह जाता है ?

दूसरी ओर पंजाब द्वारा पारित कानून के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदी पर सजा का प्रावधान केवल गेहूं एवं धान की खरीद पर लागू होगा,न कि सब फसलों पर। इसका स्पष्ट अर्थ है कि बाकी फसल बोने वाले किसानों की सरकार को कोई चिंता नहीं है। इसके अलावा यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि दशकों से हरियाणा-पंजाब सहित उत्तर भारत में फसल विविधीकरण की जरूरत महसूस हो रही है तो केवल गेहूं व धान का एमएसपी सुनिश्चित कर इस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जा सकता है। आश्चर्य की बात है कि राज्य सरकार ने जिन कानूनों का विरोध किया है,उस तरह के कानून तो राज्य में पहले से ही विद्यमान हैं। साल २००६ में पंजाब में कै. अमरिंदर सिंह ने ही एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट एक्ट (एमेंडमेंट)एक्ट के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी।किसानों को भी छूट दी गई कि,वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है। २०१९ के आम चुनावों में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में इन्हीं प्रकार के कानून बनाने का वायदा किया था,जिसके विरोध में वह अब कानून लाई है। साल २०१३ में अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ की स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार ने अनुबंध कृषि की अनुमति देते हुए कानून बनाया। अब केन्द्र ने दोनों को मिला कर नया कानून बनाया तो कांग्रेस व अकाली दल बादल इसके विरोध में आगए। यह कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब सरकार ने उक्त कदम किसान हित की बजाय राजनीतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रख कर अधिक उठाया है। तलवार से मक्खी उड़ाने जैसी मूर्खता कर डाली है, जिसका खमियाजा किसानों को उठाना पड़ेगा।

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