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बंगाल:मर्यादा क़ा ध्यान नहीं रखा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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प. बंगाल के नंदीग्राम में ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। जो शुभेंदु कल तक ममता के सिपहसालार थे,वे आज भाजपा के महारथी हैं। ऐसा बंगाल के कई चुनाव-क्षेत्रों में हो रहा है। ममता की तृणमूल कांग्रेस से इतने नेता अपना दल बदलकर भाजपा में शामिल हो गए हैं कि यदि ममता की जगह कोई और नेता होता तो शायद अब तक घर बैठ जाता,लेकिन ममता अपना चुनाव-अभियान निर्ममतापूर्वक चला रही है। देश में मुख्यमंत्री तो कई अन्य महिलाएं भी रह चुकी हैं,लेकिन जयललिता और ममता-जैसी कोई शायद ही रही हो। ममता बनर्जी ने अकेले दम कम्युनिस्ट दल के तीन दशक पुराने शासन को उखाड़ फेंका। उसकी शुरुआत २००७ में इसी नंदीग्राम के सत्याग्रह से हुई थी। यदि तृणमूल पार्टी नंदीग्राम और बंगाल में जीत गई तो वह भाजपा के लिए अखिल भारतीय स्तर पर उसके गले का हार बन जाएगी। ममता ने लगभग सभी प्रमुख विरोधियों-दलों को संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कई बार प्रेरित किया है। दिल्ली की चुनी हुई केजरीवाल सरकार को रौंदने की जो नई कोशिश केन्द्र सरकार ने की है,उसे ममता ने लोकतंत्र की हत्या बताया है। ममता को हराने के लिए भाजपा ने इस बार जितना जोर लगाया है,शायद अब तक किसी अहिंदीभाषी राज्य में उसने नहीं लगाया,लेकिन खेद है कि ममता और भाजपा,दोनों ने ही मर्यादा का ध्यान नहीं रखा। इस चुनाव में जितना मर्यादा-भंग हुआ है,उतना किसी चुनाव में हुआ हो,ऐसा याद नहीं पड़ता। अब तक भाजपा के लगभग डेढ़-सौ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। बंगाली मतदाताओं को हिंदू-मुसलमान में बांटने का काम कम्युनिस्ट के अलावा सभी पार्टियां कर रही हैं। जातिवाद और मजहबी पाखंड का सरे-आम दिखावा बड़ी बेशर्मी से बंगाल में हो रहा है। बंगाल का औद्योगिकीकरण और रोजगार तो कोई मुद्दे हैं ही नहीं। ममता ने चुनाव आयोग के मुँह पर कालिख पोतने में भी कोई कमी नहीं रखी है। उस पर इतने घृणित शब्दों में अब तक किसी नेता ने ऐसे आरोप नहीं लगाए हैं। चुनाव आयोग ने नंदीग्राम में धारा १४४ ठोंक दी है और नंदीग्राम के ३५५ मतदान केन्द्रों पर केन्द्रीय बलों की कंपनियां जमा दी हैं। उसके २.७५ लाख मतदाताओं में ६० हजार मुस्लिम है। बंगाल के इस चुनाव में सांप्रदायिक और जातिय आधार पर अंधा-मत (थोक) पड़ने वाला है। यह लोकतंत्र की विडंबना है। भाजपा के बढ़ते प्रभाव से घबराकर ममता उसे ‘बाहरी’ या ‘गैर-बंगाली’ दल बता रही है,यह बहुत ही अराष्ट्रीय कृत्य है,लेकिन बंगाल का यह चुनाव इतने कांटे का है कि ऊँट किस करवट बैठेगा,यह अभी कहना मुश्किल लगता है। यदि बंगाल में भाजपा सत्तारुढ़ हो जाती है तो यह उसकी अनुपम उपलब्धि होगी और यदि हार गई तो अगले चार साल उसकी नाक में दम हो सकता है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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