डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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‘दिदिया,चलो अब हमारे साथ हमारे गाँव चलो,यहाँ हम आपको अकेला नाहीं छोड़ेंगे।’ जब रामवती ने अपनी मालकिन सुमित्रा जी से यह कहा तो वह सोच में पड़ गई। कोरोना का कहर चरम सीमा पर था। ‘तालाबंदी’ के कारण जैसे जिन्दगी थम गई थी। सुमित्रा जी रिटायर्ड प्रिंसिपल थी। उन्होंने शादी नहीं की थी। रामवती शुरु से ही उसके साथ रहती थी,क्योंकि सुमित्रा जी का मायका रामवती का गाँव ही था। रामवती का पूरा परिवार गाँव में रहता था। रामवती ने सोच लिया था कि,दिदिया को अकेली नहीं छोड़ूंगी।
आज सुमित्रा जी गाँव आ गई। वहाँ सबने सुमित्रा जी का बहुत अच्छा स्वागत किया। उनको लग रहा था कि आज पहली बार अपना परिवार मिल गया। वह आँगन में बैठी देख रही थी रामवती की तीनों बहुएं मिल कर मसाले कूट रही है,और आपस में हँसी-मजाक कर रही हैं। इतना
अपनापन यह शहर में कहां है ! रामवती बाहर से आई और बहुओं को डाँटने लगी-‘अरे इतनी जोर से हँस रही हो,दिदिया क्या सोचेगी। तुमको पता नहीं, दिदिया कितनी कड़क मिजाज हैं।’
बहुएं बिलकुल शान्त हो गई। सुमित्रा जी उठी और रामवती से बोली-‘अरे तुम कौन होती हो मेरी बहुओं पर लगाम कसने वाली! अरे ये तो इस आँगन की चहकती चिड़िया है।’