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बूँद बनती जिंदगी

तृप्ति तोमर `तृष्णा`
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

जीवन का आधार है जल हर क्षण हर पल,
दूर तक बहती नदी का मीठा पानी कल-कल।

जल के भिन्न-भिन्न रूप,अनेक रंग,अनेक है आकार
जल से कहीं नदी,कहीं दरिया तो कहीं तालाब है सराबोर।

जल नदी रुप में गुनगुनाती लहरों का सुहाना गीत,
जैसे कह रहा झर-झर झरते झरने का मधुर संगीत।

‘अ’ से आरंभ से ‘ज्ञ’ ज्ञानी तक २६ अक्षर की होती वर्णमाला,
‘स’ से साँस चलने से लेकर ‘ज’ से जल से ख़त्म होती जीवन-लीला।

जल की काया कभी ठोस,कभी गैस,तो कभी तरल,
इसकी एक अवस्था होती सरल-सहज तो दूसरी जटिल।

मुश्किल वक्त में जल की आखरी बूँद बनती जिंदगी-मौत के बीच की सीढ़ी,
और दूसरी तरफ सीप में पड़ कर बूँ से मोती तक के बीच की कड़ी॥

परिचय-तृप्ति तोमर पेशेवर लेखिका नहीं है,पर प्रतियोगी छात्रा के रुप में जीवन के रिश्तों कॊ अच्छा समझती हैं।यही भावना इनकी रचनाओं में समझी जा सकती है। आपका  साहित्यिक उपनाम-तृष्णा है। जन्मतिथि २० जून १९८६ एवं जन्म स्थान-विदिशा(म.प्र.) है। वर्तमान में भोपाल के जनता नगर-करोंद में निवास है। प्रदेश के भोपाल से ताल्लुक रखने वाली तृप्ति की लेखन उम्र तो छोटी ही है,पर लिखने के शौक ने बस इन्हें जमा दिया है। एम.ए. और  पीजीडीसीए शिक्षित होकर फिलहाल डी.एलएड. जारी है। आप अधिकतर गीत लिखती हैं। एक साझा काव्य संग्रह में रचना प्रकाशन और सम्मान हुआ है। 

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