गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…
शरीर हो या प्रकृति सभी पांच तत्व से बने हैं और वे हैं-जल,वायु,पृथ्वी,अग्नि और आकाश। इन पाँचों में संतुलन बना रहना अति आवश्यक है,तभी हम पर्यावरण को सब तरह से अपने अनुकूल पाएंगे, लेकिन आजकल भिन्न-भिन्न कारणों से इसकी मात्रा में असंतुलन भी होता है और वही चिन्ता का कारण है।
चूँकि,पांच तत्वों से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है इसका सीधा अर्थ है कि जंतु,पेड़-पौधे और हम मनुष्य भी इन पंच-तत्वों के संयोग से ही पैदा हुए हैं। अतः,इन पंचतत्वों से ही मानव जीवन का निर्माण माना जाता है,और इन्हीं से हमारी सृष्टि व मानव का अस्तित्व है। प्रकृति और मनुष्य का सम्बंध आदिकाल से परस्पर निर्भर रहा है। जैसे ही इनमें संतुलन बिगड़ता है,तो पर्यावरण दूषित हो जाता है।
संतुलन बिगड़ने के अनेक कारण हम सभी को स्पष्ट दिखाई देते हैं,लेकिन हम अपने स्वार्थ के चलते उनकी अनदेखी करते हैं और परिणाम भी भुगतते हैं।
अब चूँकि जल से ही जड़ जगत की उत्पत्ति हुई है इसलिए मानव के अलावा सभी तरह के पेड़-पौधों के साथ साथ सभी पशु पक्षियों और अन्य जीवों को भी जल की आवश्यकता होती है। उसी तरह सस्ती विद्युतीय उर्जा उत्पन्न करने,उद्योगों के उत्पादन,मत्स्य पालन,अस्पताल,विद्यालय आदि अनेक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी जल उतना ही महत्वपूर्ण है। हम जल से सम्बन्धित कुछ बड़े कारणों पर चर्चा करेंगे तो बहुत कुछ स्पष्टता दृष्टिगोचर होगी-
ऐसा माना जाता है कि जितना जल संसार में है, उतना ही प्रतिशत जल इस शरीर में है। यानि हमारे शरीर में लगभग ७० प्रतिशत जल विद्यमान है,जिस तरह धरती पर जल विद्यमान है। याद रखिए कि, जितने भी तरल तत्व जो शरीर और इस धरती में बह रहे हैं वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो,वसा हो,शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम,लेकिन दुनिया की बेतहाशा बढ़ती आबादी ने सम्पूर्ण विश्व में जल पर गहरा संकट उत्पन्न कर दिया है। इसलिए जल का संतुलन भी रहना बहुत आवश्यक है,पर हमने अपने स्वार्थ के चलते जल का अति दोहन किया ही नहीं,बल्कि कर भी रहे हैं। यही कारण है कि खेती में अधिक कीटनाशक व आवश्यकता से अधिक पानी डाल कर जमीन का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं और इससे वांछित उपज भी नहीं मिल रही है एवं पर्यावरण असंतुलित हो रहा है।
जल के उपयोग एवं प्रदूषण में उद्योगों की एक बहुत बड़ी भूमिका है। उद्योग वाले तो सोचते ही नहीं हैं और सारा कचरा तालाबों-नदियों में धड़ल्ले से डाल देते हैं,जिसके चलते तालाब,नदियाँ प्रदूषित भी हो रही हैं और जनता के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है । इस प्रकार हमें जल के साथ-साथ पृथ्वी को भी बचाना होगा।
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और तो और हमारी कृषि मानसून पर आश्रित भी है। मानसून की अनियमितता,जलसंकट और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे किसान सबसे अधिक पीड़ित हैं इसलिए जल भण्डारण अति आवश्यक है। जल भण्डारण पर सभी सरकारें योजनाबद्ध तरीके से काम भी कर रही हैं और प्रोत्साहित भी।
कम पानी से नहाना,आरओ वाले बेकार पानी से घर वाले पौधों को पानी देना,कार को पाइप की बजाय गीले कपड़े से साफ करना आदि के साथ हमें बारिश के पानी की विधि का भी उपयोग करना चाहिए। कुल मिलाकर पानी को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। उसका आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को कृषि कार्य इत्यादि में प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमें पर्यावरण पर विशेष ध्यान देना होगा। इस धरा को हरा-भरा रखना होगा, ताकि समय पर वर्षा हो और पानी के प्राकृतिक स्त्रोत ना सूखें।
कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए और अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
इसके अलावा जल संरक्षण की नई तकनीक का उपयोग कर ही हम भू-जल को संरक्षित कर पाने में सफल हो पाएंगे। अब समय की पुकार यही है कि हमें पानी का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए और इसे प्रदूषित करने वाली गतिविधियों को सीमित करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि हमें पानी बचाने के लिए पहल करने की जरूरत है चाहे कमी हो या न हो,यानि स्वयं ही जल के महत्व को समझ अपने से ही इस मुहिम की शुरुआत कर अमोल पानी को बचाने का प्रयास अति आवश्यक है।
हमारे देश के जलसंकट को दूर करने के लिए दूरगामी समाधान के रूप में विभिन्न बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने से बहुत लाभ मिलेगा। जैसे इंदिरा गाँधी नहर बन जाने से राजस्थान की अतृप्त भूमि की प्यास बुझ सकी,ऐसे ही अन्य प्रयासों से देशभर में सूखे और बाढ़ की समस्या के समाधान के साथ साथ नहर,नौवहन के विकास को प्रोत्साहन कर नए पर्यटन स्थल भी विकसित किए जा सकेंगे,जिससे देशभर में बड़े स्तर पर खुशहाली और हरियाली लाई जा सकती है।
संक्षेप में पर्यावरण के मुख्य बिंदुओं,कारणों व निदान से स्पष्ट है कि पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी केवल मनुष्य के जिम्मे है,केवल और केवल मनुष्य के जिम्मे है। इसलिए हम सभी को प्रण लेकर पानी बर्बादी को रोककर अपने जीवन व प्रकृति को हरा-भरा तथा खुशहाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में चूकना नहीं है।
योग,तंत्र,आयुर्वेद व ज्योतिष इत्यादि सभी ने जिन पांच मूल तत्वों से शरीर का निर्माण बताया,उसी को संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक चौपाई लिख पूरे मानवजाति के सामने पर्यावरण का एक सही खाका खींच दिया था। उस चौपाई में जिन विशिष्ट पांच तत्वों का उल्लेख किया,उसमें जल को भी विशिष्ट तत्व मान उल्लेख किया गया है,जिसे आज के वैज्ञानिकों ने न केवल स्वीकारा है,बल्कि मान्यता भी दी है। वह चौपाई है-
‘छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा॥’