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अलविदा हो रहा हूँ

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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बीस के विष से क्षय होकर,
अलविदा हो रहा हूँ मैं दो हजार बीस
ला रहा है नवीन सूरज,
दो हजार इक्कीस,मेरी कुर्निशl
दिया है आपको बहुत कष्ट,
बहुत जन हुए हैं स्वजनहारा
रहे आप सब बहुत त्रास से,
प्रार्थना मेरी,खुशी आए इक्कीस मेंl
मुक्त हो विश्व महामारी से,
वापस आए आनन्द उत्सव में
घर-घर से आए हँसी का ठहाका,
बेकारी बंद हो,थम जाए मृत्यु का रोनाl
स्कूल-कॉलेज खुल जाए,
विभोर हो जाए शिशु कल्लोल से
रेल गाड़ी छूटे जोर से,
हो-हल्ला हो बाजार में।
नवीन ऊषा के पूर्व में,
फेंक देना मुझे काल की गह्वर मेंl
जिससे मैं कभी न वापस आ पाऊं,
यह सजीव विश्व में,बीस का विष न बनेll

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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