फाल्गुनी हवा

तारा प्रजापत ‘प्रीत’रातानाड़ा(राजस्थान) ***************************************** फाल्गुनी हवा-सी,तुम्हारी स्मृतियों की शीतलताकर देती है मन शीतल,तुम्हारी उन्मुक्त हँसीभर देती है वादियों की,खाली झोलियाँ। फूलों के उदास चेहरों पर,ठहर जाती हैओस की नन्हीं-नन्हीं बूंदें,झूमती लताओं…

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जीवन की दौड़…

प्रो. लक्ष्मी यादवमुम्बई (महाराष्ट्र)**************************************** जीवन की इस दौड़ में राही…तुझे अकेला चलना है। कहने को तो साथ हम हैं,तुझे किस बात का ग़म हैलेकिन इस जीवन की राह में…राही तुझे…

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साँसों का साथी…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़)********************************************* वक्त साँसों का साथी उम्र भर बनके रहता,पर बुरा वक्त को ही आदमी दु:ख में कहता। कुछ बयां कर न सकता, पर करम कुदरती हैं,हर…

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मुहाफ़िज़

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’कानपुर(उत्तर प्रदेश)********************************************* मुहाफिज़ पड़ा सो रहा रौशनी का।बड़ा दायरा हो रहा तीरगी का। फरेबो दगा आम इतना चलन में,भरोसा नहीं रह गया अब किसी का। दमन…

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दानवीर कर्ण

रत्ना बापुलीलखनऊ (उत्तरप्रदेश)***************************************** निर्मल नीर के सरोवर तीर,बैठ तरूवर की छायाकर्ण कर रहा था ध्यान,त्याग वसुधा की माया। तभी दैदिप्यमान रवि,फैल गया चहुँ ओरस्वंय दिनकर खड़े,सामने उसके ठौर। दिनकर बोले-'हे…

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एक दुर्भिक्षुक

सच्चिदानंद किरणभागलपुर (बिहार)**************************************** सुचिभेद्य अंधकार को,भेदित‌ कर कलांतरसे दुर्भिक्ष को क्या पता ?कब कहां आराम है,या हो कोहराम…दुर्दिन के साए में,लिपटे खोज रहा!अपनी फूटी किस्मत पररो-रो पेट की,‌क्षुब्ध क्षुधा‌ मिटाने…

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दास्तां

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* रहे दास्तां यदि जीवित तो, पाती तब वह मान है।गौरव में जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है॥ दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बलपेट…

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दिल के अरमां…

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*************************************** देखना एक दिन,दुनिया से चले जाएंगेढूंढते फिरोगे,बिल्कुल नज़र नहीं आएंगेचर्चे होंगे हमारी वफ़ा के,इस जमीं परऔर हम सिर्फ,तस्वीर में नजर आएंगे। बेजान-सी तन्हाई तुम्हें,जीने नहीं देगीरात के…

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विचलित हूँ

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** विचलित हूँ विचरण पथ पेअंतःकरण में होता सोर,उर दौड रहा अचरज रथ पेधूमिल राह मेरी हर ओर। मानो तो जैसे कोहरागर्जन हो बादल-सा सोर,योग-भोग के मध्य तर्जनटकरा…

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हँसता हूँ, मगर उल्लास नहीं

गोपाल मोहन मिश्रदरभंगा (बिहार)***************************************** हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं, रोने पे मुझे विश्वास नहीं,इस मूरख मन को जाने क्यों, ये जी बहलावे रास नहीं। अश्रु का खिलौना टूट गया, मुस्कान…

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