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एक दुर्भिक्षुक

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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सुचिभेद्य अंधकार को,
भेदित‌ कर कलांतर
से दुर्भिक्ष को क्या पता ?
कब कहां आराम है,
या हो कोहराम…
दुर्दिन के साए में,
लिपटे खोज रहा!
अपनी फूटी किस्मत पर
रो-रो पेट की,
‌क्षुब्ध क्षुधा‌ मिटाने को।

चाह का कोई आसार,
ही नहीं तो क्यों करें ?
मौसम की बात,
कब बरसात, कब सुखात,
रातें होती सोने को
दिन होता कुछ करने को।

भाग्य विधाता को कोसे,
क्यों! वो तो
सृष्टि-दृष्टि के समय,
स्वरूप हैं जन्म-मरण के
भूगर्भ या मातृय गर्भ
जल-थल वन-पर्वतीय के,
जीवन सप्राणेस्य प्रवाह
तो क्यों न कहूं!
एक ‘दुर्भिक्ष’ जीवन,
है कर्म-फलित
जन्मोधर भाग्य संस्कार।

भाग्योदय के संतत्प से,
सदृढ़ होती अंत्योदिष्ट भावना
में प्रखर हो जाती,
जीवकोपार्जन में मंत्रमुग्ध हो
एक दुष्प्रायता, कालातीत, निस्तेज के
अनेक नामों से
वहीं पड़ा शहरी पथगाह के,
किनारे आमूर्त दीनता से
दुर्दिन दुर्भिक्ष की
अन्तर्वेदना के अश्रुपन्न साक्षात्
दर्शन अदृश्य आकृति में,
एक दुर्भिक्ष के भिक्षुक में॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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