दुनिया एक मुसाफिर खाना
शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** रचनाशिल्प:मात्रा भार १६+१४=३० (ताटक छंद आधारित) किस पर तू इतराए प्राणी, तेरा है नहिं मेरा है,दुनिया एक मुसाफ़िर खाना, केवल रैन बसेरा है। फँसा रहेगा मोह बंध में, जब तक है जीवन तेरा,रिश्ते-नाते हैं सब मेरे, माल खज़ाना है मेरा।साथ चले नहिं कुछ भी तेरे, जोगी वाला डेरा है।दुनिया एक मुसाफ़िर … Read more