शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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रक्षाबंधन विशेष….
रचना शिल्प:मात्रा भार १६+१२=२८
राखी लिये हाथ में बहना, भैया तुम्हें पुकारे।
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे॥
बरसों बीत गये हैं भैया, मुख तेरा नहिं देखा,
फटे कलेजा पीड़ा से ये ,कैसा विधि का लेखा।
क्यों इतना निर्दयी हुआ है, ये तो मुझे बता रे,
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे…॥
दूर देश बाबुल ने ब्याही, दोष बता क्या मेरा,
रात कटे हैं रो-रो कर के, होता नहीं सवेरा।
सावन बीत रहा राखी पर, अब तो मुझे बुला रे,
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे…॥
आजा गले लगा लूँ तुझको, मुखड़ा जरा निहारूँ,
चंदन अक्षत का टीका कर, मैं आरती उतारूँ।
थाल सजाये बैठी हूँ मैं, राखी तो बँधवा रे,
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे…॥
माँ-बाबा क्या भूल गये हैं लाडो को परणा कर,
नीर झरे नैनों से दुखड़ा, गाऊँ किसे सुनाकर।
लेजा मुझको आकर भैया, बाबा से मिलवा रे,
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे…॥
इस पावन रिश्ते को मेरे, भैया भूल न जाना,
अपनी बहन लाडली को, तुम ही नैहर दिखलाना।
तन-मन वारूँ तुझ पर भैया, तुम हो राजदुलारे,
ओ माँ जाये भाई आजा, बहना पंथ निहारे…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है