दीन-हीन कुंठित मजदूर
ओम अग्रवाल ‘बबुआ’मुंबई(महाराष्ट्र)*************************************** परिभाषा मजदूर की,पूछ रहे हैं आप।‘बबुआ’ इतना जानिए,जीवन का अभिशाप॥ दीन-हीन कुंठित पतित,भूखा फिर लाचार।बबुआ है मजदूर का,इतना-सा व्यापार॥ सभी सृजन के मूल में,छिपा हुआ मजदूर।बबुआ कैसे हो गया,फिर आँखों से दूर॥ आसमान चादर बना,धरती बन गई खाट।मजदूरों के बस यही,बबुआ देखे ठाठ॥ मजदूरों के नाम पर,होता रहा मजाक।बबुआ बातें बड़ी-बड़ी,शाम ढले … Read more