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इन्सान और भगवान

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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इंसां होना है कठिन,सुन तू ऐ भगवान।
देख परेशानी ज़रा,जीना ना आसान॥

इंसां नित ही भोगता,कष्ट,दर्द का शाप।
दु:ख के काँटे,वेदना,कौन सकेगा माप॥

इंसां ईश्वर पूजता,सुखी रहे हर एक।
पर पीड़ा का संग है,बढ़ते रोग अनेक॥

सचमुच में होना सरल,स्वर्ग बैठ भगवान।
पर धरती पर आदमी,की आफ़त में जान॥

जब धरती पर आ गए,भगवन् ले अवतार।
झेली विपदाएँ बहुत,पाया अति अँधियार॥

इंसां कितना है दुखी,क्या जाने भगवान।
क़दम-क़दम पर मौत है,मुश्किल का जयगान॥

स्वर्ग बैठ शासन करें,सुखमय हैं भगवान।
पर कितना पीड़ित,दुखी,धरती का इनसान॥

जन्म मनुज का ले यहां,केवल पश्चाताप।
मानव अकुलाता सतत्,लगे उसे अभिशाप॥

मंदिर-मस्जिद रख दिया,इंसां ने भगवान।
नहीं करे पर दु:ख परे,परेशान इनसान॥

यह दुनिया है कष्टमय,सुख दे दे भगवान।
अन्न,नीर दे,दे वसन्,कर कोविड-अवसान॥

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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