धरती माँ व्याकुल
तृषा द्विवेदी ‘मेघ’उन्नाव(उत्तर प्रदेश)***************************************** आदि शक्ति हे जग जननी माँ,पीड़ाओं को हरिये आकर।धरती माँ व्याकुल रहती है,अंत पाप का करिये आकर। अंतर्मन अब हार रहा है, lमन को धीर दिलाऊँ कैसे,घोर निराशा व्यापी जग में,आशा ज्योति जलाऊँ कैसे।धर्म समर में मातु विराजो,रूप कालिका धरिये आकर,धरती माँ व्याकुल रहती है,अंत पाप का करिये आकर…॥ डरी-डरी क्यों … Read more