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जल ही जीवन

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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जल ढलानों को बहे ये न शिखर को जाने।
जल ही जीवन है मगर कद्र न जीवन माने।
जल ढलानों पे बहे प्यार धरातल को दे,
इस अदा पर ही कदर जल की न जीवन मानेंं।
जल ढलानों को बहे…॥

दास्तां खुद ही कहे जल ये सुनो क्या कहता,
मैं हुआ दर से बदर मुझको न रोका तुमने।
मैं छटा प्यारी धरातल को सदा देता हूँ,
दर-बदर करके कदर मेरी न जीवन मानेंं।
जल ढलानों को बहे…॥

अब्र बन दर-बदर मैं बादलों में फिरता हूँ,
बूंद बनकर जमीं पे बादलों से गिरता हूँ।
जब समंदर में था तो हर नदी से मिलता था,
अब तो खुद से ही मिलने को मैं लम्हें गिनता हूँ।

वादियों में भी मुझसे हर सुहाने मंजर हैं,
पर न मेरी ही कदर कोई न जीवन मानेंं।
जल ढलानों को बहे…॥

प्यार से गोद में पवन बिठा के ले आई,
बन गया बादलों की मैं भी यहां परछाई।
है यहां पर घटा की जो छटा निराली-सी,
दिख सका मैं न मगर फिर भी छटा बिखराई।

पर न मिटने का मिला हस्र किसी भी पल में,
जिन्दगी जान के भी मुझको न जीवन मानें।
जल ढलानों को बहे…॥

जिस्म हो या हो जमीं तीन हैं मेरे हिस्से,
जिन्दगी सृष्टि चलाती है ये सच्चे किस्से।
देन सबको ही यहां दाता से मिलती लेकिन,
बिन मशक्कत के मिली देन के भी क्या हिस्से।

जिन्दगी टूट के बिखरे न कभी दुनिया में,
देन जैसी भी मिली इसकी कदर को मानें।
जल ढलानों को बहे…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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