घाव बहुत गहरे हैं
प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) *********************************************************************** रोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं,अपनों ने जो सौंपे हैं वो,घाव बहुत गहरे हैं। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही,संतापों का मेलाकहने को है भीड़,हक़ीक़त,में हर एक अकेला। रौनक तो अब शेष रही ना,बादल भी ठहरे हैं,अपनों ने जो सौंपे वो,घाव बहुत गहरे हैं॥ मायूसी है,बढ़ी हताशा,शुष्क हुआ हर मुखड़ाजिसका … Read more