बेटी है तो कल है

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ ‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ (२८ सितंबर) विशेष… बेटियाँ हर परिवार के लिए बहुत ही भाग्यशाली होती है, क्योंकि सनातन संस्कृति वाले उसे पूजनीय मानते हैं। वह दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी का स्वरूप होती है। इसलिए कन्या हमारे समाज को आपस में एकता के सूत्र में बंधे रखती है, जिससे परिवार में … Read more

जीवन की जड़ें पूर्वजों में, हम उनके ऋणी

डॉ. विद्या ‘सौम्य’प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)************************************************ श्राद्ध, श्रद्धा और हम (पितृ पक्ष विशेष)… भारतीय समाज एवं संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देवतुल्य या ईश्वर स्वरूप माना जाता है। माता-पिता अथवा पूर्वजों के प्रति श्रद्धा एवं आदर भावना जीवन पर्यन्त तक निभाना भी भारतीय समाज की संस्कृति का … Read more

वंचित के उत्थान का संकल्प बने नए भारत का आधार

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** ‘अन्त्योदय दिवस’ (२५ सितंबर) विशेष… भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना में सदैव यह विचार रहा है कि समाज की वास्तविक उन्नति तभी संभव है, जब समाज का सबसे अंतिम व्यक्ति-वह व्यक्ति जो सबसे अधिक उपेक्षित, वंचित और अभावग्रस्त है, उसके जीवन में भी सुख, सम्मान और समृद्धि का प्रकाश पहुँचे। यही … Read more

नवरात्र पर्व:श्रद्धा, शक्ति, साहस और ज्ञान का प्रतीक

पद्मा अग्रवालबैंगलोर (कर्नाटक)************************************ प्रतिवर्ष आने वाला नवरात्र पर्व माँ दुर्गा की आराधना के साथ ही आत्मचिंतन और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा का अवसर भी है। माँ दुर्गा के नौ रूप, जिन्हें हम नवदुर्गा या नवरात्र कहते हैं, हर दिन नई चेतना व सामाजिक संदेश लेकर आता है। आज के समाज में व्याप्त चुनौतियों से निपटने … Read more

तने हुए लोग… क्यों ??

सीमा जैन ‘निसर्ग’खड़गपुर (प.बंगाल)********************************* नहीं अच्छा लगता…बाण पर कसे तीर जैसे हमेशा कसे हुए रहना। हर वक्त बेवजह चौकस तने हुए रहना, जैसे बस अभी ही युद्ध छिड़ने वाला हो… जैसे आज ही प्रलय आ जाएगा, जैसे पूरे देश का खर्चा-पानी यही चला रहे हैं। क्यों लोग खिलखिलाकर हँसने को शिष्टाचार के ख़िलाफ़ समझते हैं…? … Read more

युद्ध-आतंक के दौर में शांति के लिए भारत की महती पुकार

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ (२१ सितम्बर) विशेष… ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाना आज के समय की सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। जब पूरी दुनिया युद्ध, हिंसा, आतंकवाद, जलवायु संकट और असमानताओं के दौर से गुजर रही हो, तब शांति का महत्व केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार बन जाता है। इतिहास गवाह … Read more

गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं पितर

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएँ पितरों को कैसे मिलती है ?कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन … Read more

गौरवपूर्ण पहचान के रूप में अपनाएं हिन्दी को

पद्मा अग्रवालबैंगलोर (कर्नाटक)************************************ भारत ऐसा देश है, जहाँ हर कुछ किलोमीटर के बाद भाषा और बोली बदल जाती है। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विविधता का प्रमाण है। बहुत पुरानी कहावत है- “कोस कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी।”हिंदी हमारे स्वाभिमान और गर्व की भाषा है। यह पूरे विश्व में बोली … Read more

‘नवरंग’ का गीत-संगीत आज भी सतरंगी

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ सन १९५९ में प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘नवरंग’ के गीत और संगीत आज इतने वर्षों बाद भी दिल को छू लेता है। बहुत सुकुन देने वाली धुनें हैं, फिल्म का संगीत अपने-आपमें बहुत ही कर्णप्रिय था। संध्या व वी. शांताराम और संगीतकार सी. रामचंद्र ने जो सुर और ताल के साथ … Read more

सृष्टि बचाने के लिए संयुक्त परिवार आवश्यक

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)******************************************* बहुत पीछे न जाते हुए यदि मैं अपनी ही बात करूँ तो हर घर में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-ताया, बुआ, माता-पिता के साथ अपने भाई-बहन और चाचा-ताया के बच्चे प्रायः एक छोटे से परिवार में संयुक्त रहते थे। जब माता-पिता स्वयं दादा-दादी बन जाते और दादा-दादी परलोक गमन कर जाते, तब बंटवारा होता … Read more