नज़र

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ रचना शिल्प:मात्रा भार १८,१९,२१,१९ नज़रों का इशारा जो मिल गया,दिल मेरा बहारों-सा खिल गया।रौशन शमा रही रात रात भर-वो क़यामत थी,रूह से हिल गया॥ क़यामत नज़र जवाब क़रारा…

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जो सहते दर्द,वो बनते भगवान

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* बिना ऊँचा उठे कभी आसमान मिलता नहीं है,बिन कर्म कभी जीत का ईनाम मिलता नहीं है।भक्ति सेवा से ही मिलती कृपा ईश्वर की-बिन दिल जीते कभी सम्मान…

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सर्वदा साथ मिलकर रहें

अवधेश कुमार ‘अवध’ मेघालय ********************************** कयामत की देवी कयामत न ढहाओ,कयामत से दुनिया बिखर जाएगीकयामत खिलाफत बगावत अदावत,करोगे तो दुनिया ये मर जाएगी।चलो साथ मिलकर ये दुनिया बचायें,बचायें प्रकृति और…

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न बाँटो हमें

शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’लखीमपुर खीरी(उप्र)***************************************** दर्द हमसे जिगर में न पाला गया,छीन उसका लिया क्यों निवाला गया।जो स्वयं एक उन्नति की बुनियाद है-उसको मुद्दा बनाकर उछाला गया॥ जाति व धर्म में…

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शरद ऋतु का बस अंत ‘बसंत’

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* शरद ऋतु को करके प्रणामअब खुमारी-सी छाने लगी है,लगता है ऋतु राज़ बसंत कीरुत अब कहीं आने लगी है।माँ सरस्वती का आशीर्वाद तोअब पाना है हम सबको-मन…

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प्रकृति क्रुद्ध

शशांक मिश्र ‘भारती’शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) ************************************ भारत देश,विरोध का विरोध-न परदेश। प्रकृति क्रुद्ध,ग्लेशियर टूटा-मन न शुद्ध। उन्हें सुविधा,मरे श्रम श्रमिक-न ही दुविधा। परिचय–शशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैL २६ जून १९७३ में…

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लंदन तक थर्राता था

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’मुंबई(महाराष्ट्र)*************************************** आदर्शों के साँचे में वो,सहज सरल ढल जाता था,किन्तु तनिक त्योरी चढ़ती तो,लंदन तक थर्राता था।जिसने सत्य-अहिंसा को अपना हथियार बना डाला-ऐसा पुण्य विलक्षण जीवन,सबके मन को…

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जैसी करनी वैसी भरनी

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* आज आदमी अनगिनत चेहरे लगाये हज़ार है,ना जाने कैसा चलन आ गया व्यवहार है।मूल्य अवमूल्यन शब्द कोरे किताबी हो गये-अंदर कुछ अलग कुछ आज आदमी बाहर है॥…

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धरती का भगवान

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’मुंबई(महाराष्ट्र)*************************************** दाल और बस रोटी ही,भोजन में पकवान बना,गोल घड़ी थी चश्मा था जो,जीवन की पहचान बना।निज कपड़े निज बर्तन सारे,खुद ही धोया करता था-कहने को इंसा था…

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देश-धरा को अर्पण था

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’मुंबई(महाराष्ट्र)*************************************** दीन-हीन की दलित पतित की,पीड़ा का वो दर्पण था,और उन्हीं की खातिर उनका,सारा नेह समर्पण था।निर्मल मन था दुर्बल तन था,तन पर एक लंगोटी थी-शेष रहा जो…

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