पर्यावरण पर कराई राष्ट्रीय काव्य संगोष्ठी

मंडला(मप्र)। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद कर्नाटक इकाई द्वारा पर्यावरण दिवस पर ऑनलाइन राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी कराई गई। गोष्ठी में परम श्रद्धेय श्री गुरु जी गौतम ऋषि (राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय गुरुकुल…

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यादें

संजय जैन मुम्बई(महाराष्ट्र) **************************************** मेरी आँखों में क्यों तुम,आँसू बनकर आ जाते होऔर अपनी याद मुझे,आँखों से करवाते होमेरे गम को आँसूओं,द्वारा निकलवा देते होऔर खुशी की लहर का,अहसास करवा देते…

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फिर सब गुलज़ार होगा

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’बरेली(उत्तरप्रदेश)********************************* हिम्मत रखना दिन वैसे ही फिर गुलज़ार होंगें,बीमारी से दूर फिर शुभ समाचार होंगें।दौर पतझड़ का आता है बहार आने से पहले-पुराने दिन फिर वैसे ही बरकरार…

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मेरी साँझ

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’इन्दौर(मध्यप्रदेश)************************************ सांझ,तन्हाई और मैं,यह नीला आसमानरोशनदान पर बैठी गौरैया,आँगन से धीरे-धीरेघाम का खिसकना।उसके जाने के बाद,कुम्हलाई-सी कनेर,कुमुदिनीपीपल के पीछे,छुपता हुआ सूरजहाथ में एक कप चाय।घरौंदे में बजता…

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सुख के दिन

रीता अरोड़ा ‘जय हिन्द हाथरसी’दिल्ली(भारत)************************************************ 'सुख के दिन' तो तब आएँगे जब हम सब सत्कर्म करेंगे,कर्म के साथ-साथ पूजा,दान-पुण्य स्वधर्म समझेंगे। बुरे दिन तब टल जाएँगे सुख के दिन तेरा…

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प्रकृति प्रेम

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** सौंधी-सौधी सी मिट्टी मेंसौंधा-सौंधा सा कल है,अंकुरित होती डालियों पे-आने वाला मीठा-सा फल है। हर्षित,उपवन-सा देख इन्हेंआज बहारों-सा मेरा मन है,बच्चों के जैसे थे कभी जो-आज यौवन…

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नमन मातृभूमि

श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* नमन करती हूँ सभी जगत,हे मातृभूमि आपको,पुण्य भूमि में यज्ञ करने से मिटाती हो दु:ख-श्राप को। आओ मिल के करें गुणगान,अपनी भारत माता का,अपने आँचल में…

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अमृत था या राग

डाॅ. पूनम अरोराऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)************************************* धुला आकाश,तारामण्डल से सुशोभितशरद की ठंडी रात,कभी आनन्द का झोंकाकभी प्रेम की हिलोर,कभी शांति का ठहराव।कभी चाह कभी चाव,कभी बहाव औ अनिद्रावैराग्य में बीतती रात…तभी…

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खुशियों की खूंटियाँ

अमृता सिंहइंदौर (मध्यप्रदेश)************************************************ क्यों ढूंढ रही हूँ खूंटियाँ अपनी खुशियाँ टांगने को ?क्यों ढूंढ रही हूँ कंधे सहानुभूतियाँ बटोरने को ?क्यों पाल रखा हैं वहम मैं कमज़ोर हूँ ?खुश रहो,के…

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पृथ्वी हूँ मैं

असित वरण दास,बिलासपुर(छत्तीसगढ़)*********************************************** पृथ्वी हूँ मैं,मौन रहतीएक नीलेपन में,चंचल रहतीछलछल बहती शिशु नदी में।निःस्तब्ध देखती,पर्वत शिखर परसूर्यकिरणों का,निर्बाक उत्तरणअभिमानी वर्फ़ का,पिघलकर यूँ हीएक नदी में,अनायास रूपांतरण।देखती रहती,पर्वत शिखर से अग्नि…

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