मन का दर्पण मिला नहीं
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ तन तो देखा रोज मुकुर में,मन का दर्पण मिला नहीं।देखा पीछे बिम्ब प्रकृति का,लिये खड़ा उपहार सभीआये स्वयं कक्ष में मेरे,अचला के श्रृंगार सभी।नित्य सजाया तन पुष्पों से,मन का उपवन मिला नहीं। दिखा इसी दर्पण में मुझको,भूतल का विस्तार यहांमैं आगे हूंँ पीछे मेरे,एक बड़ा संसार यहां।तन तो चला योजनों इसमें,मन का वाहन … Read more