उठता धुआँ..
निर्मल कुमार जैन ‘नीर’ उदयपुर (राजस्थान) ************************************************************ कर बंदगी- धुआँ बन उड़ती, यह जिंदगीl कर तू दुआ- न जले कोई घर, न उठे धुआँl उठता धूम्र- दूषित होती हवा, घटती उम्रl जिंदगी जुआ- समझ कर खेल, उठता धुआँl मन को छुआ- किसी की जिंदगी से, हटता धुआँl परिचय-निर्मल कुमार जैन का साहित्यिक उपनाम ‘नीर’ है। … Read more