कुल पृष्ठ दर्शन : 365

आ भी जाओ दिलरुबा

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
*******************************************************

महबूब मेरे जरा सुन-सुन,
रुक जा रुक जा,ओ मेरे सनम।
यूँ खफ़ा-खफ़ा क्यों रहती हो,
जरा रुक जाओ तुम्हें मेरी कसम।

दाँतों से दबा कर चुनरी को,
जब नज़रें शरारत कर जाएं।
उफ़्फ़! इस अदा के क्या कहने,
हम वारि-वारि तुझ पर जाएं।

फूलों का गजरा लेकर,
कब से खड़ा हूँ राहों में।
बालों में सजाऊंगा तेरे,
और भर लूंगा तुझे बाँहों में।

आ भी जाओ दिलरुबा तुम,
देखो,तुम्हें मनाने आया हूँ।
दिल अपना हथेली पे रखकर,
सुनों,मैं नज़राना लाया हूँ॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

Leave a Reply