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तालाबंदी का सफर

दृष्टि भानुशाली
नवी मुंबई(महाराष्ट्र) 
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साल ‘२०२०पूरे विश्व को आजीवन याद रहेगा। बाढ़,चक्रवात,आतंकवादी हमला,तालाबंदी,जनता कर्फ्यू,कोरोना विषाणु आदि न जाने कितनी विपदाएँ सही है पूरे विश्व ने।कोविड-१९की इस महामारी के चलते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ महीनेतालाबंदीकी घोषणा की थी। सभी देशवासियों नेतालाबंदीका पालन तो किया,किंतु अपनी रोजी-रोटी कमाने हेतु मनुष्य को बाहर निकलकर परिश्रम तो करना ही पड़ता है,इसीलिएतालाबंदीखोलने का निर्णय लिया गया और साथ ही सावधानी बरतने का निवेदन किया गया। इधर,महाराष्ट्र राज्य में भीकोविड-१९से पीड़ित मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती नजर आ रही थी। इस वजह से हमने, यानी माँ,बहन और मैंने हमारे गाँव गुजरात जाने का निश्चय किया। २५ जून को हम ट्रेन से मेरी मौसी जी के घर वापी जाने के लिए निकले। वहां पहुंचते-पहुंचते हमें तकरीबन ३ घंटे लगे। इससे पूर्व जब वापी जाते थे,तब तत्काल टिकट मिलना बहुत मुश्किल होता था और लोकल डिब्बों में तिल रखने की जगह नहीं होती थी,किंतु इस बार हम बड़ी आसानी से वापी पहुंचे।कोरोनाकी वजह से न टिकट मिलने में कोई समस्या हुई,न ही ट्रेन में किसी प्रकार का जमघट देखने को मिला। एक डिब्बे में केवल ८ से १० व्यक्ति थे,और वो भी १-२ मीटर के अंतर पर बैठे थे। मुख पर मास्क,हाथों के मोजे,सैनिटाइजर आदि वस्तुओं का हमने पूरा ख्याल रखा था। घर पहुंचते ही हम सभी ने स्नान कर लिया और फिर मौसी जी ने सबके लिए 'काढ़ा' बनाया। पहले घर पहुंचते ही मौसी जी हमें शरबत पिलाती थीं,लेकिन इस 'कोरोनासुर' के कारण हमें 'कड़वा काढ़ा' पीना पड़ा। कहां शरबत की मिठास और कहां काढ़े का कड़वा अनुभव...खैर,समय-समय की बात है। हमारे घर की और यहां की दिनचर्या पूर्णतः समान थी। फर्क था तो सिर्फ इतना कि यहां पूरा परिवार जैसे मौसा-मौसी जी, भैया-भाभी,छोटा भाई,माँ बहन,हम सभी साथ में रहते थे,और वहां सिर्फ हम तीन। वापी में एक हफ्ता रहने के बाद हम निकल पड़े मेरे मामा जी के घर जामनगर की ओर। वापी से जामनगर का सफर हमने लक्ज़री बस से तय किया। बस से जामनगर पहुंचने के लिए हमें १२ घंटे लगे। रात ९ बजे के आसपास हमारी बस एक स्थानक पर रुकी, जहाँ यात्रियों के लिए जलपान की व्यवस्था थी। बस ने हमें सुबह ७ बजे जामनगर पहुंचा दिया था। घर पहुंचते ही वापी वाले सफर की तरह सबसे मिलना बाद में ही हुआ और नहाना पहले।जामनगर में घूमने-फिरने हेतु अनगिनत ऐतिहासिक,धार्मिक आदि दर्शनीय स्थान है। विशेषकर श्रावण मास में यहां मेला लगता है,सर्वत्र हरियाली होती है और पूरा शहर खुशियों से झूम उठता है,किंतु इस महामारी के चलते सब कुछ ठप हो गया था। मेले के दर्शन तो नसीब नहीं हुए,अपितु हमें पूरे महीने 'हॉल नगर','बेडरूम हिल्स', 'किचनपुर' आदि जगहों के दर्शन करने को मिले। भले ही हम बाहर घूमने नहीं जा पाए, लेकिन मामी जी हमें घर पर ही स्वादिष्ट और लाजवाब व्यंजन बना कर खिलाती रही। जामनगर में कोरोना का प्रभाव काफी कम था,इसलिए वहां के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के द्वार सदैव खुले ही रहते थे। जब मेरी दसवीं की परीक्षा का परिणाम आया था,तब सभी मेरे अच्छे अंक देखकर बहुत खुश हुए थे,और उसी दिन मेरी नानी जी मुझे मंदिर ले गई थीं। वहां सबके साथ हँसते-खेलते दिन कैसे निकल जाते थे,पता ही नहीं चलता था,लेकिन किसी ने सच ही कहा है-'अपना घर आखिर अपना ही होता है। अपने घर की सूखी रोटी भी हमें स्वादिष्ट लगती है',तो रक्षाबंधन के दूसरे ही दिन हम मुंबई के लिए रवाना हो गए। ४ जुलाई को दोपहर की लक्ज़री बस से हम वापस आने के लिए निकल पड़े और ५ जुलाई की सुबह ६ बजे हम अपने घर पहुंच गए। वास्तव में 'तालाबंदी का यह यादगार सफर शायद ही भूल सकूंगी।

परिचय-दृष्टि जगदीश भानुशाली मेधावी छात्रा,अच्छी खिलाड़ी और लेखन की शौकीन भी है। इनकी जन्म तारीख ११ अप्रैल २००४ तथा जन्म स्थान-मुंबई है। वर्तमान पता कोपरखैरने(नवी मुंबई) है। फिलहाल नवी मुम्बई स्थित निजी विद्यालय में अध्ययनरत है। आपकी विशेष उपलब्धियों में शिक्षा में ७ पुरस्कार मिलना है,तो औरंगाबाद में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए फुटबाल खेल में प्रथम स्थान पाया है। लेखन,कहानी और कविता बोलने की स्पर्धाओं में लगातार द्वितीय स्थान की उपलब्धि भी है,जबकि हिंदी भाषण स्पर्धा में प्रथम रही है।

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