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समकालीन विद्रूपताओं को लघुकथाओं का विषय बनाना होगा-प्रो. खरे

लघुकथा सम्मेलन….

मंडला(मप्र)।

अधिकांश लघुकथाएं काफी संतोष देती हैं। युवा पीढ़ी के लघुकथाकारों को मेरा परामर्श है कि वे लघुकथा की विषयवस्तु अपने सामाजिक जीवन से लें,साथ ही साथ समकालीन विसंगतियों व विद्रूपताओं को अपनी लघुकथाओं का विषय बनाएं।
लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे(मंडला) ने यह बात कही। अवसर था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के ‘अवसर साहित्यधर्मी’ पत्रिका के पृष्ठ पर संयोजक सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित ऑनलाइन ‘हैलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन’ का,जिसकी अध्यक्षता डॉ. खरे ने की।
मुख्य अतिथि डॉ. संगीता तोमर ने कहा कि,इस दौर में जहां टेक्नोलॉजी का व्यापक विकास हो गया है, स्त्रियों की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में भी बदलाव आया है। भूमंडलीकरण और उदारीकरण के बाद समाज में कई बदलाव हुए हैं। ऐसे में लघुकथा सामाजिक जीवन की यथार्थता को उजागर करने में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वरिष्ठ कथा लेखिका चित्रा मुद्गल की लघुकथा ‘बयान’ की प्रस्तुति को काफी दर्शकों ने पसंद किया। संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि,चित्रा मुद्गल की लघुकथाएं हमारे भीतर की कमजोरियों पर इस प्रकार प्रहार करती है कि हम मनोवैज्ञानिक रूप से आत्मचिंतन और वैचारिक मंथन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
सम्मेलन में प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र ‘ने ‘हाथी के दांत’,राजप्रिया रानी ने ‘पवित्र रिश्ता ‘,रशीद गौरी ने ‘रिपोर्ट’ और प्रो. खरे ने ‘असली विकलांग’ का पाठ किया।

सम्मेलन में प्रस्तुत प्रेमचंद,रविंद्रनाथ टैगोर, फलावेयर,हेमिंग्वे (अमेरिकी),बर्टोल्ट ब्रेख्त (जर्मन) के साथ डॉ. कमल चोपड़ा,विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) की लघुकथाओं को लोगों ने देखा और सराहा।

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