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‘कोरोना’ का इलाज ‘पापड़’ या ‘टीका’ ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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चाहे तो इसे ‘सदी का सबसे बड़ा भ्रम’ कह लें। ‘भ्रम’ ये कि जब देश में ‘कोरोना’ इलाज के इतने देसी नुस्खे तैयार हैं तो फिर मोदी सरकार कोरोना टीका तैयार करवाने में वक्त और पैसा क्यों ‘बर्बाद’ करने में लगी है ? हमारे वैज्ञानिक क्यों अपना पसीना बहा रहे हैं ? गोमूत्र से लेकर पापड़ तक की इस ‘विस्तृत औषधीय सीमा’ के होते हुए नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के जरिए देश में
३ कोरोना जाँच केन्द्रों का फीता काटा। श्री मोदी ने देश को भरोसा दिलाया कि हमारे वैज्ञानिक कोरोना का असरदार टीका बनाने पर तेजी से काम कर रहे हैं।
कोविड-१९ के बारे में मुझ जैसे अल्पज्ञानी लोगों को समझ नहीं आया कि जब देश में तरह-तरह के कोरोना नुस्खे सुझाए और जारी किए जा रहे हैं, तब वैज्ञानिक तरीके से दवाइयां बनाने में वक्त जाया करने का क्या औचित्य ?, क्योंकि हमारे यहां बिना किसी प्रामाणिक शोध,अध्ययन के मात्र अंतर्ज्ञान से ही कोरोना के इतने सारे रामबाण उपाय हमारी झोली में हैं कि लगता है दुनियाभर के कोरोना दवाकांक्षी भारत में डेरा डाले होंगे।
जरा इन कोरोना उपायों पर एक नजर डालें। इस फेहरिस्त में पहला नाम हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी का है। स्वामीजी ने जनता कर्फ्यू लागू होने के पहले ही ‘गो मूत्र’ समारोह करके बता दिया था कि कोरोना विषाणु केवल इसी से डरता और मरता है। कई श्रद्धालुओं ने गोमूत्र पान भी किया, लेकिन ‘असुर’ मुआ ज्यादा शक्तिशाली साबित हुआ।
‘तालाबंदी’ अ-तालाबंदी के दूसरे चरण में योग गुरू बाबा रामदेव ने ‘कोरोनिल’ दवा जारी कर बताया कि कोरोना की देसी दवा आ गई है। हालांकि,मोदी सरकार ने इस दवा पर रोक लगा दी। इस झटके के बाद बाबा ने इसे ‘इम्युनिटी बूस्टर’ के रूप में बाजार में उतारा। अपनी प्रतिरोधक क्षमता पर संशकित लोग इसे इस्तेमाल कर भी रहे हैं। इसके पहले बाबा ने एक उपाय और बताया था कि अगर कोई अपनी नाक में सरसों का तेल डाल ले तो अति सूक्ष्म कोरोना उसके पेट में चला जाएगा। पेट में मौजूद अम्ल कोरोना से मुठभेड़ कर किस्सा खत्म कर देंगे।
हमारे देसी उपायों की खूबी यह है ‍कि ये जरूरी नहीं कि वो दवा ही हो। यानी कोरोना विषाणु के दमन के लिए हमें ‘भक्ति रस’ से लेकर पापड़ आदि तक के खानदानी इलाज बताए गए हैं। सबसे हैरान करने वाला कोरोना ‘पापड़ोपचार’ है। मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का हाल में एक वीडियो फैला,जिसमें मंत्री एक निजी कम्पनी के पापड़ को यह कहकर प्रचार करते दिखे कि इस गुणकारी पापड़ को खाने से कोरोनारोधी प्रतिजैविक तैयार होते हैं। यानी पापड़ में डले हल्दी,काली मिर्च,दाल इत्यादि। जिस पापड़ का मंत्री प्रचार कर रहे थे,वह कोरोना काल में खुद को ‘इम्युनिटी बूस्टर पापड़’ के रूप में पेश कर रहा है। वैसे भी देश में पापड़ का मार्केट करीब १ हजार करोड़ रू. का है और हर साल पापड़ की तरह बढ़ रहा है।
उधर,कर्नाटक में एक कांग्रेस नेता और बेंगलुरू उल्लाल म्युनिसिपल कार्पोरेशन के काउंसलर राघवेन्द्र गट्टी ने कोरोना का ‘नशीला’ उपाय बताया। गट्टी ने कहा कि ९० एमएल रम में एक चम्मच काली मिर्च मिलाकर अपनी उंगली से इसे हिलाएं और गटक जाएं। यह बात अलग है कि,विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही चेता चुका है कि कोई भी खाद्य पदार्थ या आहार कोरोना संक्रमण न तो रोक सकता है और न ही इसे ठीक कर सकता है। केवल प्रतिरोधी तंत्र मजबूत कर सकता है।
मानो इतना ही काफी नहीं था। भाजपा सांसद सुश्री प्रज्ञा ठाकुर और प्रदेश के मंत्री ने कोरोना का आध्यात्मिक उपाय बताया कि १० दिन तक रोजाना शाम सात बजे से हनुमान चालीसा का पाठ करें,कोरोना निकट नहीं आएगा। जब हनुमत जाप कोरोना को मार रहा हो तो महाबली के आराध्य राम का जिक्र अनिवार्य ही है। मप्र विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने पूरी गंभीरता से बताया कि इधर अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी,उधर कोरोना जड़ के साथ उखड़ना शुरू,लेकिन कोरोना भगाने का सरलतम सांगीतिक उपाय केन्द्रीय मंत्री और आम्बेडकरवादी रामदास आठवले ने बताया। कहा कि बस आपको ‘गो कोरोना गो’ गुनगुनाना है। सरगम सुनकर ही कोरोना चलता बनेगा। यूँ कोरोना प्रकोप के शैशवकाल में में खुद श्री मोदी ने भी ताली-थाली पीटने जैसे मनोबलवर्द्धक उपाय बताए थे। लगता है बाद में उनका भी ‘मोहभंग’ हो गया। उधर,कोरोना है कि सुरसा की तरह फैलता ही जा रहा है।
तर्क दिया जा सकता है कि ये तमाम नुस्खे केवल लोगों में विश्वास जगाने, महामारी के आत्मनिर्भर इलाज को बढ़ावा देने, जो मिले उसी को दवा मान लेने के मकसद से सुझाए गए हैं। इन्हें हिकारत से देखना ‘देशद्रोह’ है। केवल इसके पीछे की पवित्र भावना देखें। इनसे कोई फायदा हो न हो तो नुकसान भी क्या है ?
बात सही है। ये दवा भले न हो,पर दुआ तो है। औषधिक भी और आर्थिक भी, लेकिन पेंच ये है कि कोरोना निदान के इतने बहुविध उपायों के रहते सरकार कोरोना के टीके और दवा की खोज के पीछे क्यों पड़ी हुई है ? क्यों मोदी थालियां छोड़ ‍कोरोना जाँच केन्द्र खुलवाने में लग गए हैं ?
इधर,जमीनी हकीकत यह है कि कोरोना रक्तबीज राक्षस की माफिक हर किसी को अपना शिकार बना रहा है। आज देश में कोरोना संक्रमितों की संख्‍या करीब १५ लाख से ऊपर पहुंच गई है और कोरोना मौतों का
आँकड़ा के ४० हजार को छू रहा है। हो सकता है इन लोगों ने गोमूत्र पान न किया हो, हनुमान चालीसा पाठ में कोताही की हो फिर….।
पूरी दुनिया ‘मूर्ख’ है,जो कोविड-१९ की दवा और टीके की खोज में पागल हुई जा रही है। हमारी सरकार भी बार-बार बता रही है कि देसी टीका ‘कोवैक्सीन’ अब परीक्षण के अंतिम दौर में है। उधर विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का ध्यान हमारे देसी नुस्खों पर नहीं जा रहा है तो यह उसकी अज्ञानता और दुराग्रह है। इधर लोग भी बेचैनी के साथ यही सवाल कर रहे हैं कि कोरोना का टीका कब आएगा? विश्वसनीय दवा कब आएगी ?
यही असल ‘भ्रम’ है। जब पहले से हमारे पास इतने सारे देसी उपाय मौजूद हों तो यह सारी मशक्कत‍ किसलिए ? और अगर ये सब महज टोटके हैं तो इनको खाद-पानी किसलिए ?

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