बुद्धिप्रकाश महावर मन
मलारना (राजस्थान)
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एक दिन वह था जब हम सोच रहे थे कि `कोरोना` मात्र वुहान की एक बीमारी है,ये हमारे देश में कैसे आ सकती है। जब देश के प्रवासियों से यह भारत में आई,तो फिर सोचा यह बीमारी हम तक नहीं पहुंच सकती और आज हम एकदम गलत साबित हो गए। आज यह देश के हर बड़े शहरों से कस्बों तक रक्त बीज की तरह अपना साम्राज्य बढ़ा रही है। जब यह लगने लगा कि प्रवासियों से इसका फैलाव स्थिर हो रहा है,तो देश में अचानक जमाती आ गए,जिसके कारण संपूर्ण देश में अफरा-तफरी मच गई। ऐसे में लोगों में डर बैठना वाजिब था,क्योंकि इसका संबंध सीधे-सीधे जीवन से था और जहां जीवन-मृत्यु में फासला कम दिखने लगता है,वहां मनुष्य सब-कुछ करने को तैयार हो जाता है।
अब बात आती है बेरोजगारी और भुखमरी की,तो देश के नीचे तबके और मजदूरों से पूछिए,जो इस जीवन के दौरान क्या-क्या नहीं झेल रहे। सरकार उनके लिए जो कर रही है,वह भी नाकाफी है। उनके मन में कहीं न कहीं सरकार के प्रति रोष है। मजदूरों के लिए सरकार भोजन-आवास की पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पाई है। जो कुछ उनके पास था,खाते-पीते रहे। कुछ सहयोग भी मिला। कुछ दिन और बीते,लेकिन आखिरकार कब तक चलता यह। जब भूखों मरने की नौबत आन पड़ी,तो उन्होंने कोरोना की भी परवाह नहीं की और निकल पड़े। भीड़ की भीड़ दर्जनों-सैकड़ों एकसाथ,जिनका न कोई कहीं हिसाब है और न ही कोई जांच,परिणाम कोरोना विषाणु। वे खुद के साथ अपने परिवार को भी संक्रमित कर रहे। वे अपने बच्चों को कंधों पर बैठाए,सामान को पीठ पर लादे जैसे-तैसे घर की ओर लौट रहे हैं।चाहे फिर उन्हें इसके लिए अपना जीवन ही दाँव पर क्यों नहीं लगाना पड़ा।
ऐसे में कोरोना का खतरा कई गुना बढ़ गया है। अब कोरोना शहर या कस्बों की बीमारी ही नहीं रही,यह गाँव की ओर रुख ले रही हैl यह सीमा से दूसरे गाँव की ओर दस्तक दे रहा है,जो देश के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है। अब हमें और अधिक सावधान रहने की जरूरत है। यदि यह सभी गाँवों में फैल गया,तो इसे रोक पाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
हर व्यक्ति संगरोध
और अलगाव
से बचना चाहता है। वह अपने आने की सूचना छुपा रहा है,परंतु लोग जागरूक हो रहे हैं। पास-पड़ोस के लोगों को जैसे ही पता चलता है,उसकी सूचना तुरंत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता,आशा सहयोगिनी और वार्ड में तैनात शिक्षकों को देने से भी परहेज नहीं कर रहे।
गाँव में इसे आज भी हल्के में लिया जा रहा है। चाहे चाय की थड़ियाँ हो या खेल का मैदान,ताश पत्तियां हो या फिर जमघट। हर जगह दस-बीस-पचास व्यक्ति बिना मुख पट्टी लगाए एकत्रित होना कोरोना को आमंत्रित करने से कम नहीं है। ऐसे में सरकार द्वारा अरबों-खरबों रुपए खर्च कर किए जा रहे कारगर प्रयास भी असफल साबित हो सकते हैं।
हमें खुद को जागरूक होना होगा। अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी। स्वास्थ्य विभाग तथा सरकार द्वारा जारी मार्गदर्शिका का पालन करना होगा,तभी तो हमारा देश कोरोना मुक्त होगा। सबसे प्रभावशाली उपाय यही है कि,घर में रहिए और सुरक्षित रहिए।
परिचय-बुद्धिप्रकाश महावर की जन्म तिथि ३ जुलाई १९७६ है। आपका वर्तमान निवास जिला दौसा(राजस्थान) के ग्राम मलारना में है। लेखन में साहित्यिक उपनाम ‘मन’ लिखते हैं,जबकि एक राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आपको ‘तोषमणि’ नाम से अलंकृत किया है। एम.ए.(हिंदी) तथा बी.एड. शिक्षित होकर आप अध्यापक (दौसा) हैं। सामाज़िक क्षेत्र में-सामाजिक सुधार कार्यों,बेटी बचाओ जैसे काम में सक्रिय हैं। आप लेखन विधा में कविता,ग़ज़ल,कहानी,संस्मरण,लघुकथा,गीत , नज्म तथा बाल गीत आदि लिखते हैं। ‘हौंसलों के पंखों से'(काव्य संग्रह)व ‘कनिका’ (कहानी संग्रह) किताब आपके नाम से आ चुकी है। सम्मान में श्री महावर को बालमुकुंद गुप्त साहित्यिक सम्मान-२०१७,राष्ट्रीय कवि चौपाल साहित्यिक सम्मान-२०१७,काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान(२०१८), साहित्यश्री सम्मान-२०१८,मगसम-शतक वीर सम्मान (दिल्ली-२०१८),आँचलिक भाषा सेतु सम्मान-२०१८,राष्ट्रीय काव्य स्तम्भ सम्मान- २०१८,दौसा जिला गौरव सम्मान-२०१८ सहित राष्ट्रप्रेमी सम्मान (उ.प्र.-२०२०)आदि करीब ६० सम्मान मिले हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय जागृति,पीड़ितों का उद्धार,आत्म खुशी एवं व्यक्तिगत पहचान स्थापित करना है। साझा काव्य संकलन में आपके खाते में-नई उड़ान,नया आसमान, यादें,काव्य सौरभ तथा काव्य चेतना है। कई पुस्तकों,पत्र-पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में भी आपकी कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं।