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माँ से प्यारा नाम नहीं संवेदनाओं से ओत-प्रोत कविताएँ

बुद्धिप्रकाश महावर मन
मलारना (राजस्थान)

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‘माँ से प्यारा नाम नहीं’ काव्य संग्रह(जयपुर) काव्य जगत में स्थापित एवं वरिष्ठ कवि टीकम बोहरा ‘अनजाना’ की एक संवेदनशील कृति है। माँ शब्द देखने में सबसे छोटा है,परंतु इसकी महानता आकाश से भी ऊंची और गहराई समुद्र से भी अधिक है। पुस्तक का केन्द्र बिंदु माँ को रखना कवि का मुख्य उद्देश्य यह रहा है कि आज के परिप्रेक्ष्य में परिवारों में माँ के प्रति कहीं न कहीं उपेक्षित भाव रहा है। दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द और संवेदनाओं की संपूर्णता को समेटे हुए मानव संबंधों का सबसे गहरा रिश्ता इस पुस्तक की सार्थकता को व्यक्त करता है। इनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को पृष्ठों के कैनवास पर उकेरा गया है। कवि ने अपनी इस कृति को माँ को समर्पित कर माँ के प्रति समर्पण को अमरत्व प्रदान किया है।
पुस्तक का शीर्षक पुस्तक की समग्रता को समेटे हुए है। पुस्तक में माँ पर ८ कविताएं प्रकाशित की गई हैl कवि ने लिखा है-
जीवन जिससे होता शुरू,
वो माँ होती है पहला गुरु।
कवि ने माँ को जीवन का प्रथम गुरु होने के साथ-साथ जीवनदायिनी,मार्गदर्शिनी,प्रेरणास्रोत आदि सब-कुछ माना है। कवि ने लिखा है-
रोटी अगर एक माँगू तो वह मुझे दो देती है,
चोट अगर मुझे लगती है तो माँ रो देती है।
माँ के प्रति ये संवेदनाएँ दिल को हिला देने वाली हैं। कवि ‘अनजाना’ ने पुस्तक की प्रथम २ कविताओं में माँ द्वारा सीखी जाने वाली भाषा को प्राथमिकता देते हुए मातृभाषा का महत्व प्रभावपूर्ण तरीके से व्यक्त किया है। इनकी कविताओं में मातृभूमि एवं देश के प्रति अनन्य प्रेम है। देश,तिरंगे और मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा सामने आया है। कवि ने भारत माँ का जय गान करते हुए देश के समस्त भेदभाव को मिटाकर सर्वांगीण विकास करने की पहल की है। साथ ही विश्व आतंकवाद को शैतान का दर्जा देते हुए मानवता के समर्थन में पुरजोर विरोध किया है।
यही नहीं,कवि ने मातृशक्ति की प्रेरणात्मक बातों के साथ पुस्तक में नारी शक्ति पर भी अपनी लेखनी चलाई है। पुरुष से पहले जगने से लेकर उस के बाद सोने तक की समस्त जिम्मेदारियों का सुंदर चित्रण किया है। बेटी की संवेदनाओं को कविता में स्थान देकर ‘बेटी बचाओ अभियान’ को गति देते हुए उसकी महिमा का बखान सुंदर शब्दों में करते हुए कहा है-इंसान का अस्तित्व है बेटी जो आज पुरुष प्रधान समाज को एक अच्छा संदेश देती है।
जहां कविता हो और श्रृंगार की बात नहीं हो,यह कवि अनजाना के लिए अधूरापन होगा। कवि ने अपनी कविताओं में प्रेम को पर्याप्त स्थान दिया है। उन्होंने पति-पत्नी के जीवन को प्रेम से आनंदमय बनाने के लिए एक-दूसरे का आत्मिक साथ देने की जरूरत बताई है।
‘जीवन पानी का बुदबुदा’ कविता में कबीर के रहस्यवाद और आध्यात्मिकता का स्पष्ट प्रभाव दिखाई दे रहा है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि हे मानव तू अपने आप को मानव सेवा में लगा ले,कुछ भी साथ नहीं जाएगा। ‘अन्नदाता’ और ‘अब के फिर पड़ा अकाल’ कविताओं में किसानों की विकट स्थिति और मनोदशा को बखूबी उजागर किया है। देखिए ये पंक्तियाँ-
अबकी फिर पड़ा अकाल…
…साफा फटकर बना रुमाल।

कवि ने दोस्ती को जीवनभर का रिश्ता बताया है। दोस्त कम रखो,परंतु अच्छे और विश्वासपात्र रखो। संकट के समय कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने वाला हो। लिखा है कि जीवन को हर सम्भव तनाव से दूर रखना चाहिए।
हौंसला मानव जीवन को फर्श से अर्श तक पहुंचा देता है, इसलिए कवि ने समय के साथ जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए सच्चे साथियों का साथ लेकर बिना विश्राम किए अपनी शक्ति और सोच को पहचान कर अपने अटल लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ने का संदेश दिया है,क्योंकि सफलता का शोर करने की जरूरत नहीं है। कवि लिखते हैं-
चुनौती हम स्वीकार करें,
बाधाओं को पार करें।
‘स्वान नहीं इंसान हूँ मैं’ कविता बहुत ही मार्मिक एवं गहन संवेदना लिए हुए हैं। जो मानव के हृदय को बार-बार कचोटने को विवश कर देने वाली है। कवि लालच पर भी व्यंग्य किये बिना नहीं रह सके हैं। कवि लोकतंत्र के प्रति भी संवेदनशील हैं। उन्होंने मतदान दिवस के दिन मतदाताओं को अपना अमूल्य मत दान करने के लिए प्रेरित किया है। इसके साथ ही जलाशयों के प्रति भी संवेदनशीलता का परिचय दिया है। लोगों को जागरूक कर एक नई पहल की है।
अंततः,कहा जा सकता है कि इनका कवित्व एक तरफ रचना के रस से सराबोर है,और दूसरे और आलोचना,व्यंग्य एवं वैचारिक पक्ष की बौद्धिकता को उजागर कर रहा है। उनकी तीसरी विशेषता है मानवीय,सामाजिक,आर्थिक आदि समस्याओं की गहराई में जाने की दृष्टि। कवि का न केवल माँ के प्रति अनन्य श्रद्धा भाव है,बल्कि देश के विविध विषयों के प्रति गहरी संवेदन-शीलता लिए हुए हैं,जो कवि को कंकर से शंकर की ओर अग्रसर करती हैं। कविताएँ लय,मात्रा एवं वर्णों की सीमाओं से परे एक स्वच्छंद एवं भाव प्रबल अभिव्यक्ति है। भाषा सरल एवं प्रभावपूर्ण है;जो पाठकों में एक सकारात्मक सोच विकसित करने में सहायक है। कवि और अधिक ऊर्जा संपन्नता के साथ अपनी इस यात्रा को आगे भी बदस्तूर जारी रख सकेंगे,ऐसी शुभकामनाएं।

परिचय-बुद्धिप्रकाश महावर की जन्म तिथि ३ जुलाई १९७६ है। आपका वर्तमान निवास जिला दौसा(राजस्थान) के ग्राम मलारना में है। लेखन में साहित्यिक उपनाम ‘मन’ लिखते हैं,जबकि एक राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आपको ‘तोषमणि’ नाम से अलंकृत किया है। एम.ए.(हिंदी) तथा बी.एड. शिक्षित होकर आप अध्यापक (दौसा) हैं। सामाज़िक क्षेत्र में-सामाजिक सुधार कार्यों,बेटी बचाओ जैसे काम में सक्रिय हैं। आप लेखन विधा में कविता,ग़ज़ल,कहानी,संस्मरण,लघुकथा,गीत , नज्म तथा बाल गीत आदि लिखते हैं। ‘हौंसलों के पंखों से'(काव्य संग्रह)व ‘कनिका’ (कहानी संग्रह) किताब आपके नाम से आ चुकी है। सम्मान में श्री महावर को बालमुकुंद गुप्त साहित्यिक सम्मान-२०१७,राष्ट्रीय कवि चौपाल साहित्यिक सम्मान-२०१७,काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान(२०१८), साहित्यश्री सम्मान-२०१८,मगसम-शतक वीर सम्मान (दिल्ली-२०१८),आँचलिक भाषा सेतु सम्मान-२०१८,राष्ट्रीय काव्य स्तम्भ सम्मान- २०१८,दौसा जिला गौरव सम्मान-२०१८ सहित राष्ट्रप्रेमी सम्मान (उ.प्र.-२०२०)आदि करीब ६० सम्मान मिले हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय जागृति,पीड़ितों का उद्धार,आत्म खुशी एवं व्यक्तिगत पहचान स्थापित करना है। साझा काव्य संकलन में आपके खाते में-नई उड़ान,नया आसमान, यादें,काव्य सौरभ तथा काव्य चेतना है। कई पुस्तकों,पत्र-पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में भी आपकी कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं

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