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सृजन करे सृष्टि का

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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ईश्वर सृजन करे सृष्टि का,वही है रचनाकार बड़ा,
अद्भुत रूप दिया मानव को,मनुज देखता रहा खड़ा।

सृजन किया नदिया-सागर को,झरने कल-कल नाद करे,
जंगल पर्वत धरा विहंसती हरियाली चहुँओर भरे।
भांति-भांति के जीव सृजन कर,आल्हादित है किया बड़ा,
अद्भुत रूप दिया मानव को,मनुज देखता रहा खड़ा॥

मातृशक्ति का सर्जन करके सृष्टि का विस्तार किया,
दिए पंछियों को पर,उसने नभ में जा परवाज किया।
प्यारे-प्यारे फूल खिलाए,लगे चमन गुलज़ार बड़ा,
अद्भुत रूप दिया मानव को,मनुज देखता रहा खड़ा॥

लंबा सफ़र किया मानव ने,नयी सृष्टि का सृजन किया,
किया परिष्कृत धरती माँ को,गाँवों का निर्माण किया।
कर खेती पथरीली धरती पर जीवन का स्वर्ग गढ़ा,
अद्भुत रूप दिया मानव को,मनुज देखता रहा खड़ा॥

सृजन तभी से हुआ निरंतर नवनिर्माण बढ़ा आगे,
बुद्धि शील हो गया मनुज,तब भाग धरा के भी जागे।
नारी शक्ति ने मनुज सृजन कर नवजीवन का युद्ध लड़ा,
अद्भुत रूप दिया मानव को,मनुज देखता रहा खड़ा॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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