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रीति- रिवाज

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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“छुट्टियों में बच्चे आए हुए थे,और संयोगवश बड़े भैया का भी फ़ोन आ गया कि,अगले हफ़्ते प्राची को देखने लड़के वाले आ रहे हैं,तुम सब लोग आ जाओ…अगर सब-कुछ ठीक रहा तो एक छोटी-सी रोके की रस्म भी कर देंगे..और इसी बहाने सब लोगों का साथ में रहना भी हो जाएगा…!” सासू माँ ने जैसे ही ये बात सुनी तो वो कहने लगीं-“चलो अच्छा हुआ,ऐसे ही मौकों पर तो बच्चों को समाज के क़ायदे कानून और रीति-रिवाज सीखने का मौका मिलता है,वरना हॉस्टल में रहकर तो बच्चे सिर्फ़ अपने तक सीमित होते जा रहे हैं।” ये सुनकर मैंने भी मन ही मन उनकी बातों का समर्थन किया क्योंकि,कुछ बातें वाकई लिखित और व्यवहारिक की तरह अलग-अलग ही होतीं हैं।
अगले ही दिन हम लोग बड़े भैया के यहाँ पहुँच गए। छुट्टी का समय था, इसलिए मंझले और छोटे भैया के बच्चे भी आए हुए थे। कुल मिलाकर पूरा परिवार एकसाथ था,और सबको मज़ा आ रहा था…I
अगले दिन प्राची को देखने लड़के वाले आए, दोनों परिवारों को रिश्ता पसंद भी आ गया। प्राची को अंगूठी पहना कर उन्होंने अपनी तरफ से रज़ामंदी भी जाहिर कर दी..और थोड़ी देर बाद भोजन करके वो लोग चले गए।
उनके जाने के बाद हम सब भोजन करने बैठे तो मैंने गौर किया कि छोटे भैया की बेटी सबको मनुहार करके बढ़िया से खाना परोस रही थी,तभी मेरे बगल में बैठी चाची ने मुझसे कहा कि-‘ पूड़ी लेना था बेटा…’ तो मैंने मंझले भैया की बेटी कीर्ति से कहा-“बेटा चाची को पूड़ी दे दो।”
‘हाँ बुआ जी’,कहकर वो पूड़ी तो लाई पर… उसने उसे थाली में इतनी ज़ोर से रखी,कि मेरा दिल धड़क गया…। मैंने सोचा कि हो सकता है धोखे से ऐसा हो गया होगा,वैसे इस तरह से तो कोई देता ही नहीं..! ख़ैर,रात में जब हम लोग फ़िर भोजन के लिए साथ बैठे तो कीर्ति से भाभी ने कहा-“बेटा,मुझे एक रसगुल्ला देना तो…’ तब उसने फ़िर उसी तरह से थाली में मिठाई को छोड़ा…ये दृश्य मेरी बेटी ने रोटी परोसते हुए देखा तो उसका मुँह उतर गया। उसका बिगड़ा हुआ चेहरा देखकर मुझे अम्मा जी की बात याद आ गयी कि.. ऐसे माहौल में बच्चों को कुछ सीखने का मौका मिलता है…। हालांकि,भतीजी के भोजन परोसने का तरीका ख़राब था,लेकिन मुझे तसल्ली इस बात की हुई कि मेरी बेटी इतना तो समझ ही गई कि,प्रेम से परोसी गई रोटी का सुकून और ..बेदर्दी से परोसे गए छप्पन भोग में फ़र्क तो होता है…!

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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