डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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किसी की आँख से टपका आँसू गीला अन्तःमन हुआ,
करने लगे विलाप शब्द तब एक कविता का जन्म हुआ।
सबके दुःख को मैं अपना लूँ क्यूँ ऐसा पागलपन हुआ,
सबकी पीड़ा देख लूँ कैसे जब आँखों में सावन हुआ।
ईश्वर ने क्या दुनिया बनाई सोच कर ये मन खिन्न हुआ,
कदम कदम पर दुखः तकलीफें ये कैसा सृजन हुआ।
कहीं जन्म है कहीं मरण है कहीं राग कहीं रुदन हुआ,
ज्ञानी तक भी समझ न पाए जब प्रभु का नर्तन हुआ।
विधि के विधान से बच न पाया मानव या भगवन हुआ,
रावण को मरना था राम से तभी तो सीता हरण हुआ।
किसी की झोली खाली तो किसी का दामन धन्य हुआ,
तरस रहा कोई नैन-नक्श को कोई रूप लावण्य हुआ।
कहीं झोपड़ी में उत्सव तो कहीं महल में मातम हुआ,
कहीं गरीब खुशी से नाचे कहीं धनिक गुमसुम हुआ॥
परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।