डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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शोध-अध्ययन…..
सबसे पहले हमें भोजन और आहार में अंतर समझना चाहिए। भोजन यानी भोग से जल्दी नष्ट होना,जबकि आहार यानी जो आरोग्यवर्धक और हानिरहित होता है। शाकाहार यानी शांतिकारक और हानिरहित जो आहार होता है,उसको शाकाहार कहते है,जबकि माँसाहार यानी जो मानसिक और शारीरिक रूप से हानि पहुंचाए।
माँसाहार किसी भी धर्म में मान्य नहीं किया गया है,पर जो खाते हैं वे स्वयं अपने आपको मौत के मुँह में ले जाते हैं। खाना-पीना,प्रार्थना,पहनावा आदि स्वतंत्र व्यवस्था है,पर जो जान-बूझकर खाते हैं,उसे प्रज्ञापराध कहते हैं।
माँस खाने वालों के लिए एक जरूरी शोध आया है। इसके अनुसार जो लोग रोजाना माँस खाते हैं,उन्हें कई तरह की बीमारियां होने का खतरा है।
माँसाहारी और माँस न खाएं,ऐसा भला कैसे सम्भव है ? कई तो ऐसे होते हैं,जो रोजाना माँस खाना चाहते हैं,लेकिन नया शोध बताता है कि नियमित तौर पर इसके सेवन से ९ तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। यूके में शोध करने वालों ने माँस और ९ तरह की बीमारी के सीधे जुड़ाव के बारे में अपना अध्ययन लोगों के सामने रखा है। इसके अनुसार,जो लोग रोजाना या नियमित तौर पर माँस खाते हैं,उन्हें-मधुमेह हृदय रोग,निमोनिया और अन्य कई गंभीर रोग होने का खतरा रहता है।
ऐसा नहीं है कि इससे पहले माँस और इससे जुड़े गंभीर रोगों पर शोध-अध्ययन नहीं किया गया है। पहले किए गए कई शोध स्पष्ट तौर पर खुलासा कर चुके हैं कि लाल माँस (या प्रोसेस्ड माँस) के ज्यादा सेवन से बॉवेल कैंसर होने का खतरा रहता है,लेकिन इस शोध में पहली बार माँस खाने वालों की सेहत को मधुमेह आदि से जोड़ा गया है। यह शोध ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में किया गया है।
यहां शोध करने वालों ने पाया कि यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में ३ दिन मुर्गीपालन केन्द्र का माँस (या प्रोसेस्ड) सेवन करता है तो उसे उक्त ९ तरह की बीमारियां होने का खतरा हो सकता है। इस शोध के बाद लोगों का ध्यान विश्व स्वास्थ्य संगठन के उस दावे पर गया,जिसमें यह कहा गया था कि अत्यधिक माँस का सेवन करने वालों की सेहत को खतरा है।
शोध करने वालों ने ८ साल तक करीब ५ लाख लोगों को अपने अध्ययन का हिस्सा बनाया। इन लोगों की स्वास्थ्य जानकारी को अलग- अलग अस्पतालों से लिया गया। उनके आहार और चिकित्सा इतिहास को ध्यान में रखते हुए इस अध्ययन-विश्लेषण में पाया गया कि जिन लोगों ने सप्ताह में ३ बार या इससे अधिक बार माँस का सेवन किया, उनके स्वास्थ्य पर उन लोगों के बजाय ज्यादा प्रभाव पड़ा,जिन्होंने उक्त सेवन नहीं किया था।
ऑक्सफोर्ड विवि के अनुसार,-वह व्यक्ति जो रोजाना ७० ग्राम लाल माँस का सेवन करता है, उसे ३० फीसदी मधुमेह होने का जोखिम अधिक रहता है। इन लोगों को हृदय रोग होने का जोखिम १५ फीसदी अधिक रहता है। इसी तरह अन्य खतरे हैं।
चिकित्सकों की मानें तो ऐसे माँस में अधिक संतृप्त वसीय अम्ल होते हैं,जो शरीर में कम घनत्व लिपोप्रोटीन को बढ़ा देते हैं। इस तरह से खराब कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाता है और कई गंभीर हृदय रोग होने का जोखिम भी।
रोजाना लाल माँस खाने से-कोलोन पॉलिप, गैस्ट्रोएसोफेगेल रिफ्लेक्स,डायवर्टिकुलर बीमारी, गैस्ट्रिक,गॉल ब्लैडर रोग और ड्यूओडेनिटिस बीमारी का आगमन देखा गया है। इस प्रकार माँसाहार किसी प्रकार से खाने योग्य नहीं है। जो खाते हैं,वे स्वयं अपनी मौत को आमंत्रण देते हैं।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।