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अपने सुख में भूल गए सब

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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अदंर-बाहर में धुँधला-सा,
तम फैला चहुँ दिशि गहरा-सा मैं क्यों कह दूँ अम्बर रोता,
और क्यों पूछूँ, क्यों उलझा-सा ?

वृक्ष कटे सुलग रही धरती,
वाहन बोझ सिसक रही धरती
उद्योगों से जल वायु प्रदूषित,
स्वच्छ हवा को तरस रही धरती।

है विवेक नित नूतन रचना,
सुख-वैभव की खींच अल्पना
चला जा रहा स्वप्न लोक में,
आगत के भय से तुम डरना ?

सोचो आने वाले कल को,
हम क्या-क्या उपहार में देंगे!
अपने सुख में भूल गए सब
क्या उनको सौग़ात में देंगे ?