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दिसम्बर लेता जा…

आशा आजाद`कृति`
कोरबा (छत्तीसगढ़)

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लेता जा ये साल,दिसम्बर तुझसे विनती।

‘कोरोना’ से मौत,नहीं अब इसकी गिनती॥

खतरनाक यह साल,कहर है ये बरपाया।

अनुशासन का रोक,किसी को रास न आया॥

भारत का हर नागरिक,डर के साये में खड़ा।

कोरोना से भय बहुत,मनुज सोच में है पड़ा॥

बच्चों का इस साल,हुआ अध्ययन नहीं पूरा।

शाला जाना बंद,पाठ्यक्रम रहा अधूरा॥

उन्नति का यह मार्ग,नहीं पथ कुछ ये अच्छा।

देखो लगा विराम,नहीं पढ़ने की इच्छा॥

ज्ञान ध्यान अब भूलते,बच्चे सारे आज जी।

खेलकूद में व्यस्त हैं,भूले पढ़ना काज जी॥

कष्ट भरा यह साल,नहीं है रोजी रोटी।

संकट बहुत विशाल,बात यह नहिं है छोटी॥

तड़पे नित्य किसान,धान के पड़ते लाले।

तड़पे सब परिवार,विकट दिन आए काले॥

जन-जन आहत है हुआ,बेकारी से त्रस्त है।

नेताओं को क्या फिकर,सत्ता में वे मस्त है॥

तड़प रहे मजदूर,आज मुश्किल है जीना।

आय कहाँ से होय,निकलता नहीं पसीना॥

है जो राशन कार्ड,अन्न संपूर्ण न होवे।

बीमारी नहिं पीर,भूख से पल-पल रोवे॥

दीन-दुखी सब सह रहे,रोते सबके नैन हैं।

स्वस्थ देह मिलती नहीं,खोया दिन का चैन है॥

परिचय–आशा आजाद का जन्म बाल्को (कोरबा,छत्तीसगढ़)में २० अगस्त १९७८ को हुआ है। कोरबा के मानिकपुर में ही निवासरत श्रीमती आजाद को हिंदी,अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान है। एम.टेक.(व्यवहारिक भूविज्ञान)तक शिक्षित श्रीमती आजाद का कार्यक्षेत्र-शा.इ. महाविद्यालय (कोरबा) है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत आपकी सक्रियता लेखन में है। इनकी लेखन विधा-छंदबद्ध कविताएँ (हिंदी, छत्तीसगढ़ी भाषा)सहित गीत,आलेख,मुक्तक है। आपकी पुस्तक प्रकाशाधीन है,जबकि बहुत-सी रचनाएँ वेब, ब्लॉग और पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। आपको छंदबद्ध कविता, आलेख,शोध-पत्र हेतु कई सम्मान-पुरस्कार मिले हैं। ब्लॉग पर लेखन में सक्रिय आशा आजाद की विशेष उपलब्धि-दूरदर्शन, आकाशवाणी,शोध-पत्र हेतु सम्मान पाना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनहित में संदेशप्रद कविताओं का सृजन है,जिससे प्रेरित होकर हृदय भाव परिवर्तन हो और मानुष नेकी की राह पर चलें। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामसिंह दिनकर,कोदूराम दलित जी, तुलसीदास,कबीर दास को मानने वाली आशा आजाद के लिए प्रेरणापुंज-अरुण कुमार निगम (जनकवि कोदूराम दलित जी के सुपुत्र)हैं। श्रीमती आजाद की विशेषज्ञता-छंद और सरल-सहज स्वभाव है। आपका जीवन लक्ष्य-साहित्य सृजन से यदि एक व्यक्ति भी पढ़कर लाभान्वित होता है तो, सृजन सार्थक होगा। देवी-देवताओं और वीरों के लिए बड़े-बड़े विद्वानों ने बहुत कुछ लिख छोड़ा है,जो अनगिनत है। यदि हम वर्तमान (कलयुग)की पीड़ा,जनहित का उद्धार,संदेश का सृजन करें तो निश्चित ही देश एक नवीन युग की ओर जाएगा। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा से श्रेष्ठ कोई भाषा नहीं है,यह बहुत ही सरलता से मनुष्य के हृदय में अपना स्थान बना लेती है। हिंदी भाषा की मृदुवाणी हृदय में अमृत घोल देती है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की ओर प्रेम, स्नेह,अपनत्व का भाव स्वतः बना लेती है।”

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