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बेटी

आकांक्षा चचरा ‘रूपा’
कटक(ओडिशा)
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बेटियों की मुस्कुराहटों ने,
कई राज खोल दिए,
चुप रहे अल्फाजों से आँखों की नमी ने,
दर्द के तमाम राज बयान कर दिए।
पढ़ने दो-लिखने दो मेरे पंखों को,
उड़ान पर साक्षर होने का प्रमाण दो
मैं सब कर सकूँ,
मुझ पर विश्वास की छाप दो।
मेरे तजुर्बे ने मुझे नाकामयाबी का,
नकाब उतारना सिखा दिया
जब से पता चली जमाने को,
उड़ान मेरे साक्षर रूपी पंखों की।
दो कुलों का जग में नाम होगा,
मैं बेटी हूँ,कामयाबी के झरोखे से
पुलकित कर दूँगी संसार को,
हमें देख कर फीकी मुस्कुराहट देने वालों।
बेटी के जन्म को बदकिस्मती न मानो,
हमने भी मेहनत के दम पर ही
मंजिल हासिल की है,
हर दिल को अपना घर बना कर
दो कुलों में शान्ति प्रदान करने का आधार,
रखने के हौंसले की शक्ति ईश्वर ने दी है।
हैरान हूँ इस बात से,
समाज में आधुनिकता का दौर है
शिक्षित समाज में अभी भी बालिकाओं पर
शिक्षा के संकुचित दायरे का जोर है।
उसमें भी हम सबको अपना बनाने में,
कामयाब न हुए
सबने हँसते हुए तीर बरसाए,
रही अपना दर्द सीने में छुपाए।
अपने शिक्षण की योग्यता से समाज,
में पहचान पा सकूँगी
शिक्षित समाज का हम हिस्सा बन कर,
आने वाले दौर को सभ्य संस्कार दूँगी।
बेटी शिक्षित हो गर,
बेटा संस्कारी…
समाज से दूर हो,
घिनौने बलात्कार की बीमारी।
समाज को समृद्ध बनाने के लिए,
बालिका शिक्षा अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
देश के खुशहाल भविष्य के लिए,
करना होगा महती काम।
बालिका शिक्षा का योगदान,
करे जन-जन का कल्याण॥

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