बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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धरती पर है ओस की,बूँदें देख हजार।
मोती आभा हैं लिए,किरणों की बौछार॥
रात चाँदनी में दिखे,सुन्दरतम् मनुहार।
दुग्ध धवल-सी ज्योत्सना,छाई छटा बहार॥
रातों में ठंडी हवा,बहती है पुरजोर।
परिणित होते बर्फ में,देख ओस चहुँओर॥
देख चमकती है धरा,चन्द्र किरण के साथ।
शीतलता अहसास भी,जब छूते हैं हाथ॥
होता अनुपम दृश्य है,पर्वत और पठार।
धरती सजती ओस से,है अनुपम उपहार॥