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हारा

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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हारा-
हारा जो हिम्मत नहीं,जीता उसने युद्ध।
त्याग तपस्या साथ ही,बने धैर्य से बुद्ध।
बने धैर्य से बुद्ध,तथागत जन दुखहारी।
किया प्राप्त बुद्धत्व,जीत कर भाव विकारी।
शर्मा बाबू लाल,हार मत,मिले किनारा।
पढ़ो विगत संघर्ष,धीर जन कभी न हारा।

नारी-
नारी है सबला सदा,मानो सत्य सुजान।
जीवन दाता सृष्टि में,नारी अरु भगवान।
नारी अरु भगवान,सृष्टि भू इनसे चलती।
पले गर्भ नौ माह,पोषती पालन करती।
शर्मा बाबू लाल,तजें मन भाव विकारी।
करना इनका मान,नेह का सागर नारी।

साहस-
साहस से मिलती विजय,बिन साहस तय हार।
गज को शेर पछाड़ दे,व्यर्थ सहे तन भार।
व्यर्थ सहे तन भार,बिना हिम्मत कब कीमत।
हिम्मत का यश मान,यही है सच्चा अभिमत।
शर्मा बाबू लाल,पड़े क्यों नर सम बाहस।
करो लोक हित कर्म,बुद्धि बल अपने साहस।

नटखट-
नटखट नटवर कर पहल,डग मग पद धर संग।
रज कण कण गदगद नमन,पद पद सट कर अंग।
पद पद सट कर अंग,सतत चल चल भव नटवर।
यशुमति गदगद नंद,कलम तब जन मन कविवर।
कहत सहज कविसंत,लिखत बचपन यह झटपट।
उड़ पल पल मन भृंग,शरण तव गिरधर नटखट।

अंकुश-
अंकुश से हाथी सधे,मनुज असुर वर देव।
सब जग भव भय स्वार्थवश,करे कर्म स्वयमेव।
करे कर्म स्वयमेव,श्राप वरदान विधानी।
गीता ग्रंथ अपार,लिखे जन काव्य कहानी।
शर्मा बाबू लाल,बने शिव शंकर भ्रंकुश।
भस्मासुर का अंत,सृष्टि जनहित में अंकुश।

चंदन-
चंदन तरुवर गंध से,परिचित सभी सुजान।
घिस घिस लगे ललाट पर,शीतल चंद्र समान।
शीतल चंद्र समान,पेड़ पर सर्प लिपटते।
महँगी बिकती काष्ठ,चोर इसलिए झपटते।
करे लाल कविराय,धाय पन्ना को वंदन।
निभा राज भू धर्म,कटाया निज सुत चंदन।

थोड़ा-
थोड़ा दम भरता तुरग,करता नाला पार।
मनु बाई सम अश्व तव,होता यश संचार।
होता यश संचार,बची होती महा रानी।
होते तभी स्वतंत्र,बदलती कथा कहानी।
अड़ा न होता सोच,अमर तू होता घोड़ा।
कर चेतक को याद,अश्व भरता दम थोड़ा।

पूरा-
पूरा होता ज्ञान कब,होता ज्ञान अनंत।
कौन हुआ सर्वग्य जन,अब तक धरा दिगंत।
अब तक धरा दिगंत,ज्ञान का छोर न पाया।
बढ़ता रहता नित्य,मनुज मस्तक की माया।
शर्मा बाबू लाल,अभी है ज्ञान अधूरा।
सतत करें कवि कर्म,ध्यान दें तन मन पूरा।

सपना-
सपना था यह सच हुआ,शतक वीर सम्मान।
कुण्डलिया लिख लिख हुए,कविजन सभी महान।
कविजन सभी महान,मिले गुरु सब पारंगत।
कुण्डलिया मन भाव,छंद शाला के संगत।
शर्मा बाबू लाल,समीक्षक बन कर तपना।
लिख शतकाधिक छंद,फलित हम सबका सपना।
(इक दृष्टि यहाँ भी:बाहस,वाहस=अजगर,भ्रंकुश= स्त्री वेष में नाचने वाला पुरुष)

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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