अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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दोस्तों,बड़े दिनों क्या,लंबे अंतराल के बाद इस बार छुट्टी यानि सफर का दिलकश मजा उठाया है..जिसमें ‘फेसबुक फ्रेंड’ ने ऐसी दोस्ती निभाई कि,रिश्तेदार को पीछे छोड़ते हुए नया रिश्ता कायम किया है..।
तो बात ये है कि,दिल्ली के सफर पर इन्दौर से एक साथी को लेकर ८ जनवरी की शाम को इंटरसिटी ट्रेन से निकला..दिल्ली नजदीक आती जा रही थी…।
सुबह ६ बजे दिल्ली में उतरने से पहले बस एक बार सामने मिले हुए दोस्त अर्चू (अर्चना जैन)से रास्तेभर कई बार रोजमर्रा जैसी बातें हुई.. साथ ही निजी स्तर पर रहने की व्यवस्था का विकल्प भी स्पष्ट कर दिया,क्योंकि दोस्त चाहती थी कि हम उनके यहाँ ही रुके..।
दरअसल,मैं उनको व्यवहारिक रुप से परेशान करना नहीं चाहता था,पर उनके यहां न रुकने की स्थिति में देर रात से सुबह तक दोस्त ने इतना अधिकार-स्नेहभरा डर बताया कि मन को उधर ही मोड़ना पड़ा..तो इस बीच सुबह तक उनके पतिदेव (अनिल जी) ने भी सिर्फ घर पर ही रुकने का निमंत्रण दे दिया..और मोबाइल पर पता भी..।
खैर,सुबह मेरा मोबाइल बन्द होने पर भी साथी के मोबाइल पर ३-४ बार पूछताछ-“कहां तक पहुंचे आप ?” बराबर होती रही,रिक्शाचालक को पता भी समझाया गया। हम करीब ७:३० बजे उनके घर के नजदीक जैन मंदिर पर रुके,दोस्त के पति परमेश्वर यानि अनिल जी हमें लेने पहुंचे..इस तरह करीब पौने ८ बजे हम उनके ड्राइंग रूम में गर्मागर्म चाय का सपरिवार (उनके बेटे-अक्षत व आर्जव) आनन्द ले रहे थे..।
यहां तक तो ठीक,पर वाकई,खून के रिश्ते से भी बड़ी होती है ‘दोस्ती’,अब आप इसके बाद की दास्तान से समझिए…।
चाय से निपटते ही सब एकसाथ बैठे रहे,रास्ते का सफर और घर में सब कुशल-मंगल आदि की बात चलती रही..इसी के साथ तैयार था नहाने के लिए गर्म पानी,और आगे की तैयारी भी..तैयार होना ही था,तो नहा लिए..इसके बाद उसी पारिवारिक माहौल में शान्ति और सेवा भावना के साथ फिर-तैयार थे जोरदार नाश्ते में आलू के स्वादिष्ट पराठे जो मक्खन के साथ परोसे गये…और ढेर सारी नाश्ते की प्लेट..इन्हें देखकर मैं बहुत घबराता रहा…।
उनके परमेश्वर,बच्चों और हम सबको भोजन कराकर इतना सब करने के बाद दूसरा होता तो लंबी चादर तान सो जाता,पर ‘किचन किंग’ दोस्त अर्चू ने इसकी बजाए गाँधी नगर बाजार का रुख किया, हम तो साथ थे ही.. यहां हमने बहुत सारी खरीददारी की..और मजेदार गोलगप्पे खाए…।
घर आने पर फिर कप में बेहतरीन काफी मिली..और शाम को सबने एकसाथ भोजन का आनन्द उठाया..इस पहले दिन अनिल जी और बच्चों के साथ बतियाते हुए कब रात हो गयी,पता ही नहीं चला,पर इस बीच भी दोस्त ने उनके सोने के कक्ष में हमारे लिए सब व्यवस्था जमा दी, और सपरिवार गरमा-गरम दूध की सेवा भी की..ये समय मेरी जिन्दगी का बहुत अनमोल समय था,जिसकी दिल में अमिट छाप बनी हुई है।
इस बीच अर्चू ने जाते ही पूछा कि-“उनके लिए इन्दौर से क्या लाए हो ?”
जवाब में इन्दौर की मशहूर नमकीन देखकर वह बहुत खुश हुई…और सभी ने शौक से नमकीन एवं इन्दौरी गजक भी का लुत्फ लिया..।
फिर १० जनवरी की सुबह का नजारा भी देखिए-हमने आराम से उठ कर तैयार होने के बाद दोस्त की मेहनत-प्रेम से बने प्याज-आलू-ब्रैड के स्वादिष्ट पकौड़े खाए,और निकल पड़े पुस्तक मेला (प्रगति मैदान)… जाने के रास्ते,वाहन,किराया से जेबकतरी तक के मामले में अनिल जी ने हमें बहुत जानकारी दी,जो फायदेमंद रही..शाम को लौटने पर बहुत थकान हुई,पर घर आकर अर्चू के हाथ की बनी गरमा-गरम काफी एवं सिर की चम्पी ने मानो सारी थकान ही उतार दी..अब हमने थोडी देर आराम किया,पर उधर जारी थी खाने की तैयारी..और आज खाने में थे नान और मखनी दाल…भूख से ज्यादा खाने के कारण अब हम रात को निकले भ्रमण के लिए..और वहां से सभी के लिए पान लाए..भोजन को हजम किया तो घर आकर फिर से तैयार था गरमा-गरम दूध का गिलास..।
फिर ११ जनवरी को हम सुबह आलू,कचौड़ी के नाश्ते के साथ लाल किला,और चाँदनी चौक घूमने के लिए निकले..वहाँ इलैक्ट्रानिक बाजार देखा,शापिंग की..घूमे-फिरे, और पहुंचे दिगम्बर जैन लाल मन्दिर, जो समयानुसार खुलता है,तो बन्द होने के कारण हम पहुंचे ऐतिहासिक इमारत लाल किला..देखने में बहुत भव्य,और सुन्दरता के साथ अपनी प्राचीन भव्यता को दर्शाती इस जगह पर हमने ढेर सारी तस्वीरें कैद की..यहां से बाहर आते ही आलू की टिक्की का आनन्द लिया,पर मजा इन्दौर से कम आया..।
वापसी में घर आते-आते बहुत थकान और सिर दर्द होने लगा था..लौटते हुए चौक से दोस्त के लिए एक ‘की रिंग’ बनवाया,जिसमें लिखा था ‘अर्चना’.. दोस्त को ये बहुत पसंद आया..रास्ते में खरीदे मीठे सन्तरे,जिनको बड़े आनन्द के साथ सबने घर पर बैठकर खाया..। अब समय था रात के भोजन का तो दम आलू की सब्जी के साथ स्वादिष्ट पुलाव,..स्वादिष्ट भोजन करने के बाद हाल में बैठकर सब बतियाए.. सबका एकसाथ बैठना,हँसी-मजाक बहुत ही अच्छा लगा..वाकई दोस्त सहित परिवार के सभी सदस्य बहुत अच्छे हैं..इनके द्बारा की गई दोस्ताना मेहमाननवाजी शानदार रही…इसके बाद तो आप समझ ही गए होंगे कि,रात को सबको गरमा-गरम दूध पिलाया गया..तब सोने की तैयारी हुई..।
सेवा का सिलसिला यहीं नहीं थमा-१२ तारीख को सुबह उठ कर नहाने के बाद हमने नाश्ता किया और आज हम सब घूमने निकले क्रॉस रिवर मॉल..जहाँ मटरगश्ती की,घूमे तो यादों की तस्वीरे बनाने सहित चाउमीन और आइसक्रीम को भी नहीं छोड़ा..यहां नटखट आर्जव ने गेम के तौर पर गाड़ी चलाई..फिर रास्ते में एक रेस्टोरेंट पर मस्त छोले-भटूरे खाए…आप सोच रहे होंगे कि अब हम घर आ गए…अरे, ऐसे कैसे! अभी तो दोस्त के परमेश्वर ने रास्ते से गरम जलेबी ली..इस रसभरी का आनन्द हम सबने घर आकर लिया..रात को बढ़िया भोजन मतलब साँभर-डोसा खाया और दूध का साथ अब भी कायम रहा….।
अब बात इनके बंगले से रवानगी की,तो १३ तारीख को दोपहर 1बजे यहां से सारा सामान लेकर निकले.. इससे पहले ये हुआ कि दोस्त के निकट के रिश्ते में गमी में सुबह ९ बजे ही दोनों निकल गए,और दोनों बेटे भी अपनी रोजमर्रा में..ऐसे में पूरा खुला घर हमारे हवाले ही छोड़कर जाना भी कम अचरजभरा नहीं है..यानि कहीं-कोई ताला नहीं.. ऐसे में चाय हमने ही बनाकर मजे लिए..वहाँ से करीब ११ बजे थककर लौटी अर्चू ने पेटभर नाश्ता कराया और मना करने पर भी यात्रा के लिए पराठे-राजमा-आलू की सब्जी का खाना पैक किया..साथ में खाने की अन्य चीजें भी दी…किसी रिश्तेदार से अधिक बढ़ कर उसका और परिवार का ये प्यार देखकर आँखें छलक गयी..गेट पर हमें रवाना करते हुए वो आँखों से कहती रही-‘थोड़ा और रुक जाओ ना..’ पर मैं अन्य काम की वजह से फिलहाल निरुत्तर था,’फिर मिलेंगे’ की उम्मीद देकर चल दिया..हाँ,पर हम दोस्त-मेहमान को विदा देने के इस माहौल में भी उसने तिलक लगाना याद रखा,साथ ही दोनों को शगुन भी दिया..किन्तु हमसे बहुत मुश्किल से यानि मेरी माँ के आशीष के नाम पर ही लिया…
खैर,उसके परमेश्वर अनिल जी ने हमें खुद चौराहे तक टैक्सी के लिए सामान सहित छोड़ा..एवं टैक्सी में रवाना होने पर ही खुद गए..।
मित्रों,व्यावसायिक और सोशल मीडिया की इस आभासी-मतलबी दुनिया में ऐसा ईमानदार दोस्त और परिवार मिलना बहुत बड़ी बात है…उसके-परिवार के साथ खुशियों और आनन्द के बिताए गए ये क्षण हमेशा याद रहेंगे..जहाँ अजनबी होकर भी बहुत ही अपनापन और प्यार मिला…इस सुखद अहसास को मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा..ये जीवन की एक यादगार है मेरे लिए…ओ अनुभव-सबक भी…मेरी जिन्दगी का यह बहुत अनमोल समय रहा है..जिसे समेटकर रख लिया है..फिर से शुक्रिया दोस्त…….।
बरसों पुरानी एक पंक्ति इस सफर की दोस्ती को सार्थक करती है-
“हर रंजो-गम की दवा है दोस्ती,
कई अनहोनी बातों की दवा है दोस्ती
जमीं पर कमी है पूजने वालों की,
वरना जमीं पर खुदा है दोस्ती।”
धन्यवाद दोस्त,इस दोस्ती को यूँ ही बनाए रखना..ईश्वर उसे और पूरे परिवार को जीवनभर खुश-स्वस्थ और प्रगतिशील रखें..ऐसे निःस्वार्थी दोस्त और दोस्ती सबको नसीब हो…
