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मर्यादा को ना बिसराएं

रहें सदा ही अनुशासन में,
औरों को भी पाठ पढ़ाएं।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

सूरज करता जग उजियारा
चंद्र मिटाता है अँधियारा।
करें सभी कर्त्तव्य जगत में,
भूल करे ना कभी नियम में॥
संस्कारों का मान रखें सब,
हम भी अपना धर्म निभाएं।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

अपने पथ पर नदियां चलती,
सही समय पर आता दिनकर।
करते हैं निस्वार्थ कर्म ये,
रुकते नहीं कभी भी थककर।
चलके जीवन पथ पर अपने,
लक्ष्मण रेखा लांघ न पाएं।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

जब-जब मर्यादा को लांघा
करनी का फल हमने पाया।
इतिहासों से हमने सीखा,
फिर भी इसको ना अपनाया॥
स्वानुशासित रहें अगर हम,
कष्ट न कोई छू भी पाए।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

मर्यादा को तोड़ा था जब,
महाभारत की हुई लड़ाई।
सीता ने लांघी जब रेखा,
राघव लंका करी चढ़ाई॥
कभी न तोड़ो नियम प्रकृति के,
जिससे जीवन में सुख पाएं।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

भारत की संस्कृति है अनुपम,
संस्कारों का मान यहाँ है।
जिसने त्यागा जब भी इसको,
उसका अब अस्तित्व कहाँ है॥
मान करें संस्कृति का हम सब,
इसको जीवन में अपनाएं।
कुदरत से सीखें हम जीना,
मर्यादा को ना बिसराएं॥

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