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थे आजादी के प्रथम सपूत

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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धरती छोटा नागपुर, उलिहतू वो गाँव,
जन्म लिए बिरसा तो दिखा दिव्य प्रभाव
जैसे-जैसे बड़े हुए, देखा जीवन में अति अभाव,
पहाड़ को चीरा, जंगल काटे, मिटाया खेती का दुष्प्रभाव।

आदिवासी जनजातियों में जगाया क्रांति का अद्भुत भाव,
खेती पर केन्द्रित किया सबके अंदर मनोभाव
सफल हुआ प्रयोग यह, मिटाया अन्न संकट हर गाँव,
आत्मनिर्भर बनने की खुशी से जगा प्रसन्नता भाव।

जमींदारों के शोषण पर हुआ बिरसा का टकराव,
जमींदारी ने खेती लूटी-जंगल लूटा, दिया ये गहरा घाव
अंग्रेजों के साथ में मिलकर वसूला लगान मूल समभाव,
बिरसा ने प्रतिकार बढ़ाकर रौंदा कातिल प्रभाव।

‘तीर-धनुष’ ले डटे बिरसा, ब्रिटिश का प्रतिकार,
आदिवासी जाग गए, पाया फिर अपना अधिकार
गाँव-गाँव को जगा-जगा उभारा ‘क्रांति ज्वार’,
मुंडा समुदाय के विद्रोहों से ब्रिटिश में चिंता बढ़ी अपार।

बिरसा मुंडा की अगुआई में युद्ध हुआ घनघोर,
डोम्बार पहाड़ी गवाह बनी, भागे अंग्रेज सब चोर
मुंडा सेना की दहाड़ से ‘बिरसा’ हो गए सिरमौर,
स्वयं-भू घोषित कर दिया ‘भगवान बिरसा’ जंगल-जन का ठौर।

ज्ञान-उपदेशों से फूँकी जन-संघर्षों में जान,
धर्म-समाज को किया कुरीतियों से सावधान
अपनी ताकत के बूते पर तोड़ा हर व्यवधान,
गोरों-गद्दारों को खदेड़ दिखाई आदिवासी शान।

बिरसा मुंडा की क्रांति की जलने लगी मशाल,
अंग्रेजों-जमींदारों की ढीली हो गई चाल
हजारों छिपकर आए फिरंगी, रात में ले बम-बारूद भूचाल,
तीर-धनुष की ताकत से बिरसा मुंडा ने तोड़ा फिर से जाल।

पहली बार में पस्त हो गए अंग्रेजों के हथियार,
मुंडा सेना हर जगह पर खड़ी युद्ध ललकार
भारी सेना बंदूक-बारूद ले पहुँची अँग्रेजी सेना इस बार,
गोली मारी-बम बरसाए, मचाया हाहाकार।

गाँव-गाँव में हमला कर बिरसा को किया गिरफ्तार,
आज़ादी का बिगुल बजा, मुंडा सेना की ललकार
तीर-धनुष से टूट पड़े आदिवासी रणबांकुरे तैयार,
बम-बारूद से भारी पड़े अंग्रेजों के हथियार।

महासमर में कितने मिट गए, अजब थी चीख-पुकार,
मुंडा सेना खून से लथ-पथ करती रही प्रहार
बिरसा के बंदी बनते ही टूटी क्रांति धार,
जेल यातना झेल रहे बिरसा हो गए बीमार।

राँची का होटवार कारागार, जहाँ से बिरसा ने दिया ‘उलगुलान’ (महाहलचल) क्रांति का आधार,
जन-जन ने स्वीकार किया बिरसा क्रांति का विचार
किया दिव्य प्रहार, सशस्त्र संघर्ष भीषण था धारदार,
भाग रही थी ब्रिटिश सेना, ऐसी थी आदिवासी दहाड़।

‘मेरी खेती, मेरी माटी, मेरे जंगल, मेरे पहाड़’,
गूंज उठी चहुंओर क्रांति, जलने लगी मशाल
जोत, जंगल, जमीन के तानाशाहों पर युद्ध हुआ विकराल,
बिरसा मुंडा की आवाज़ से क्रांति हुई बहुत विशाल।

बिरसा जिस्मानी ताकत थे, चट्टानों से मजबूत,
आज़ादी के अमर-समर में मुंडा सेना शहीद अवधूत
अंग्रेजों को खदेड़ते रहे, भगाते उनका भूत,
भगवान हैं अद्भुत बिरसा मुंडा, आज़ादी के सच्चे सपूत।

हर जोर-जुल्म और शोषण पर बिरसा थे क्रांति दूत,
जन-जन में सेवा भाव का भाव बड़ा अदभुत।
ऐसे नहीं भगवान बने वो, उनसे देश अभिभूत,
याद रखेगा हिंदुस्तान, भगवान बिरसा थे आजादी के प्रथम सपूत॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”