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‘सोशल मीडिया संन्यास’ या ‘अप्रैल फूल’ का मजा..?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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क्या ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का देश के साथ मजाक था,या वे अपने सोशल मीडिया अनुकरणकर्ताओं(फालोअरों)के धैर्य की परीक्षा ले रहे थे, साफ तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। जैसे ही ट्विटर पर मोदी का ट्वीट आया कि, वे इस रविवार को(नामुराद) सोशल मीडिया को छोड़ने का मन बना रहे हैं तो लोगों ने उनके ‘मन की थाह’ लेना और सोशल मीडिया सन्यास के कारणों तथा भविष्य की ‍मीमांसा शुरू कर दी। कुछ ने तो अपने सोशल मीडिया खाते(अकाउंट)बंद करने का ऐलान भी कर डाला। टीवी चैनलों ने तो इसे ‘सोशल मीडिया बम विस्फोट’ मानकर हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। मानो नरेन्द्र मोदी का सोशल मीडिया खाता बंद हो गया तो पूरे भारत का खाता ही बंद हो जाएगा। कुछ टीवी एंकर तो सामाजिक मीडिया पर ‘असामाजिक’ होने के आरोप लगाते हुए इस गम में चूड़ियां फोड़ने पर उतारू दिखीं। कुछ समय को लगा कि,श्री मोदी का यह ट्वीट अब दिल्ली के दंगों,सीएए-एनआरसी और `कोरोना` वायरस पर भी भारी पड़ने वाला है। इस ट्वीट के बाद हजारों गुहार भरे ट्वीट होने लगे कि मोदी हमे यूँ छोड़कर न जाइए। आप का यूँ

‘सोशली’ बिछड़ना हमारे लिए अकल्पनीय है। सोशल मीडिया उपयोगकर्ता खुद को ‘सोशली’ अनाथ महसूस करने लगेंगे,क्योंकि आप हैं तो सामाजिक मीडिया है,आप हैं तो इस मीडिया पर सक्रिय रहने की हिम्मत है,आप हैं तो जिंदगी को एक मकसद मिला हुआ है,आप हैं तो देश बचा हुआ है,आप हैं तो सब-कुछ है,वगैरह…। पीएम नरेन्द्र मोदी उन शख्सियतों में हैं, जिनके इस देश-विदेश में भी करोड़ों सोशल मीडिया अनुकरणकर्ता हैं। श्री मोदी के ट्विटर पर ५.३३ करोड़ तो फेसबुक पर ४.४ अनुकरणकर्ता या अनुयायी हैं। इंस्टाग्राम पर उनके ३.५२ करोड़ अनुकरणकर्ता हैं,जबकि यू-ट्यूब पर उनके ४.५१करोड़ से अधिक ग्राहक (सब्सक्राइबर)हैंI उनके नाम पर दर्ज़नों फर्जी खाते भी हैं। श्री मोदी ट्विटर पर खुद भी २३७१ लोगों को अनुकरण करते हैं,जिनमें कुछ विवादित लोग भी हैं। उनके

अनुकरणकर्ताओं में भक्त भी हैं और आलोचक भी हैं,पर इसमें दो राय नहीं कि श्री मोदी कोई भी बात अपने तरीके और अपने नजरिए से लोगों तक पहुंचाने में माहिर हैं। यही उनकी ताकत भी है। समर्थक उनकी बातों पर आँख मूंद कर भरोसा करते हैं। यानी ‘मोदी है तो मुमकिन है..।’ इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि,अगर मोदी नहीं तो हर चीज नामुमकिन है। लिहाजा,श्री मोदी के सोशल मीडिया से क्षणिक सन्यास की सूचना ने भी लोगों को विचलित कर दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तत्काल सीख दी कि मोदी कुछ छोड़ना ही चाहते हैं तो नफरत छोड़ें,बजाए ट्विटर के। बसपा सुप्रीमो मायावती ने आशंका जताई कि कहीं मोदी का ये कदम जनता का ध्यान बंटाने का एक और प्रयास न हो। हालांकि,मोदी ने अपने ट्वीट में इतना ही कहा था कि वे सोशल मीडिया छोड़ने के बारे में ‘सोच’ रहे हैं। छोड़ा नहीं है, छोड़ ही देंगे यह भी तय नहीं है। इसके बावजूद कयासबाजी का सेंसेक्स छंलागें मारने लगा। शायद इसलिए,क्योंकि मोदी कौन-सी बात कब और किस मंशा से कह रहे हैं,इसको लेकर अक्सर असमंजस रहता है। उधर,मोदी के इस ट्वीट को ४९ हजार बार रिट्वीट किया गया।

इस बीच टीवी चैनलों की प्रायोजित बहसों में काल्पनिक प्रश्न-पत्र बंटने लगा कि मोदी जी आखिर सोशल मीडिया त्याग क्यों कर रहे हैं,ऐसी कौन-सी मजबूरियां हैं ? इसके पीछे कहीं कोई भय या वितृष्णा तो नहीं”? क्योंकि, आजकल सोशल मीडिया पर भी नए किस्म का आतंक या दहशत(टेरेरिज्म)शुरू हो गया है। यह है ‘ट्रोल टेरेरिज्म’ यानी दुत्कारने का दहशतवाद। श्री मोदी तो ट्विटर पर २००९ से हैं,जब वो गुजरात के मुख्‍यमंत्री हुआ करते थे। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि,उनके भीतर सोशल मीडिया के प्रति वैराग्य भाव जाग उठा। अगर उन्होंने सच में वैराग्य धारण कर लिया तो सोशल मीडिया अनुकरण कर्ताओं का क्या होगा ? भक्ति भाव का ये सिंदूर कहीं पुंछ तो नहीं जाएगा ? गनीमत रही कि चैनलों ने ज्योतिषियों और तांत्रिकों से ‘सोशल मीडिया वैराग्य’ का कारण और तोड़ नहीं पूछा।

अलबत्ता कुछ जानकारों ने बताया कि,श्री मोदी का यह सोशल मीडिया परित्याग किसी तरह का वानप्रस्थ नहीं है,बल्कि उनके संभावित ‘नमो’ एप को आगे करने के लिए किया गया ‘टोटका’ है। कहा गया कि श्री मोदी के सोशल मीडिया खाते पर लोग अनुसरण करने के साथ-साथ प्रतिक्रिया भी करते हैं,जो ‘ठीक’ नहीं है। ‘नमो’ एप पर लोग केवल मोदी जी के विचारों को ही पढ़ और देख पाएंगे,जिससे ‘मोदी उवाच’ की पवित्रता कायम रहेगी। आम भाषा में कहें तो जिस तरह प्रधानमंत्री रेडियो पर ‘मन की बात’ कहते हैं,उसी तर्ज पर अब वो एप के जरिए ‘मन की बात’ रखेंगे,जो जन की दखलंदाजी से दूर रहेगा।

‘नमो’ पिछले साल ही फिर शुरु हुआ था। हालांकि,इसकी उपयोगिता और उद्देश्य को लेकर काफी आलोचना भी होती रही है। श्री मोदी के सोशल मीडिया तजने की खबर से एक डर यह भी फैला कि,अगर श्री मोदी जैसी हस्तियां भी सोशल मीडिया से रूखसत हो रही हैं,तो इस मंच पर रहेगा कौन ? इसी के साथ मन में यह सवाल भी कौंधा कि लोग आखिर सोशल मीडिया पर सक्रिय होते क्यों हैं ? कुछ मौलिक सामग्री और जरूरी सूचनाओं को छोड़ दें तो इन मंचों(प्लेटफार्म्स)पर अमूमन जो प्रदर्शित किया जाता है,और जिस तेजी से लोग इन पर ‘पसंद’ व ‘प्रतिक्रिया’ करते हैं,उससे लगता है कि लोगों के पास दूसरा कोई काम नहीं बचा है। जब पसंद की संख्या करोड़ों में जा पहुंचती है तो खुद प्रदर्शित करने वाले को भी समझ नहीं आता कि उसकी पसंद मूल्य(वैल्यू) क्या है ? दरअसल,सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं का अपना मनोविज्ञान है। सोशल मीडिया पर स्थिति(स्टेटस)डालते रहना,उसे पल-पल जाँचते रहना,कुछ नया डलने में थोड़ा भी ठहराव होने पर बैचेन हो उठना,प्रदर्शित करते समय शील और अश्लील की लक्ष्मण रेखा को जिज्ञासा के डस्टर से मिटाते रहना,किसी भी प्रदर्शन पर तुरंत प्रतिक्रिया होना,कोई भी पसंद आदि न मिलने पर जीवन को निस्सार मान लेना और सोशल मीडिया को ही जीने की एकमात्र वजह समझ लेना आधुनिक सोशल मीडिया संस्कृति की अघोषित आचार संहिता है।

जाहिर है कि,सोशल मीडिया ने हमारी वास्तविक जिंदगी के बरक्स एक ऐसी नकली दुनिया खड़ी कर दी है,जो हर घड़ी फेसबुक,ट्विटर अथवा व्हाट्स एप में ही धड़कती रहती है। सोशल मीडिया की लत ही इन सोशल मीडिया मंचों की बेतहाशा कमाई का आधार है। जिसके जितने उपयोगकर्ता,उसकी जेब में उतने ही डाॅलर। सोशल मीडिया की यह कमाई विज्ञापनों के जरिए होती है, पर विज्ञापनों का मिलना भी उपयोगकर्ताओं की संख्या पर निर्भर करता है। इसीलिए,बड़े नेता,हस्तियाँ और तमाम विवादित बातें किसी भी सोशल मीडिया मंच के लिए उत्प्रेरक(केटेलिस्ट)का काम करती हैं।

यूँ आजकल कई लोग सोशल मीडिया के हमारी जिंदगी में अवांछित हस्तक्षेप से उकता कर इसे या तो छोड़ रहे हैं या फिर कुछ समय के लिए ‘विराम’ ले रहे हैं। इस हिसाब से मोदी जी ने जो ट्वीट किया ,उसमें कुछ भी गैर नहीं था। वे भी इंसान हैं और सोशल मीडिया पर रहना,या नहीं रहना उनका निजी फैसला है। इस पर सक्रिय रहने की उनकी कोई संवैधानिक बाध्यता भी नहीं है। फिर भी श्री मोदी ने उनके सोशल मीडिया अनुकरणकर्ताओं को ‘झटका’ भी दिया तो क्यों ? हालांकि,इसका राज भी उन्होंने १६ घंटे बाद खोल दिया। श्री मोदी ने ट्विटर पर बताया कि वे ८ मार्च को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर अपना सोशल मीडिया खाता उन महिलाओं के हवाले करेंगे,जिनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्पद है। उन्होंने ऐसी महिलाओं से आव्हान किया कि वे अपनी कहानियां (वह हमें प्रेरित करती हैं) पर साझा करें। आधे घंटे में यह हैशटैग‍ भारत में उच्चतम(ट्रेंड) दिखने लगा। कई महिलाओं ने इसे मोदी का नवाचार माना तो विरोधियों की नजर में यह भी प्रधानमंत्री का नया प्रचार गिमिक था। यह भी मुमकिन है कि मोदी जी ने ‘अप्रैल फूल’ २ मार्च को ही मना कर मजे ले लिए हों।

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