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एकलव्‍य

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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मैं आज जैसे ही ऑफिस पहुँची,तो चपरासी ने सूचना दी,-मैडम एक महिला आपका बहुत देर से इंतजार कर रही हैl मैंने सोचा हो सकता है कोई अभिभावक हो..तो चपरासी से कहा-ठीक है उन्हें अंदर भेज दोl
इंतज़ार कर रही वो महिला जैसे ही अंदर आई,तो मैंने उसे सरसरी निगाहों से तुरंत ऊपर से नीचे तक कई बार देख डाला! क्योंकि वो आई ही थी अत्यंत साधारण वेशभूषा में..कि मैं मजबूर हो गई उसे इस तरह देखने के लिए!!
मैंने अनमने ढंग से उससे पूछा-क्या आपका बच्चा यहाँ पढ़ता है ? तो सकुचाते हुए उसने कहा-"नई मैडम.. मैं...आपकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ,मैं बहुत दिनों से आपसे मिलना चाह रही थीl मैं तो यहीं पास के गाँव में रहती हूँ,और मैं अपने गाँव के किराना दुकान में अक्सर अख़बार में आपकी कहानियां पढ़ने जाती हूँl मैडम,मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है...,कि आप इस बार नया क्या लिखेंगी...! वो अनवरत अपनी बातें कहती रही...पर मैं उसकी बातों को ध्यान से सुन ही नहीं रही थी,सच कहूँ तो इस महिला के साधारण व्यक्तित्व को देखकर मैं थोड़ी बेपरवाह थी,कि कब ये अपनी बात ख़त्म करे..! फिर अनमने ढंग से मैंने उससे पूछा-कहाँ तक पढ़ी हो ?तो तुरंत उसने ख़ुश होकर बताया कि,बारहवीं तक पढ़ी हूँ,और पति खेती-किसानी करते हैंl उसकी बातों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता गया,मैंने महसूस किया कि,उसकी सहजता से बात करने के ढंग को देखकर उसके प्रति मेरी बेरूखी..अब जिज्ञासा में बदलने लगी है...और उसके आवरण से उसका व्यक्तित्व एकदम अलग झलक रहा थाl फिर उसने सकुचाते हुए कहा-मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी मैडम,आपसे मिलने की.. मैं आपकी तरह पढ़ी-लिखी तो नही हूँ,पर आपकी प्रेरणा से मैं भी कहानी लिखने लगी हूँ,और आपके आशीर्वाद से मेरी भी कुछ कहानियाँ पेपर में भी छपी हैl मैंने आश्चर्य से पूछा-तुम्हारा नाम..!!!तो उसने सहजता से कहा-लता..l ये सुनते ही तुरंत मैंने कहा,-लता वैष्णव!!! तो वो बोली-हाँ मैडम,ये मेरा ही नाम है…lकहते हुए वो अपनी जगह खड़ी हो गई..लेकिन अब...मैं अपनी सीट से उठ गई और बोली- अरे बैठो..खड़ी क्यों हो गई! तुम तो बहुत अच्छी कहानियाँ लिखती हो,मैं हमेशा तुम्हारी कहानी पढ़ती हूँl तुम्हारी पीला गुलाब कहानी की तो जितनी प्रशंसा की जाए,कम है l मैं तो तुम्हारी कहानी पढ़ने के बाद हमेशा सोचती थी,कि काश! एक बार इससे मिल पाती! आखिर कौन है ये..जिसकी इतनी अच्छी सोच है..! और अब मैं एक-एक करके उसकी कहानियों के नाम गिनाने लगी और वो हाँ..ये भी मेरी है और..ये भी..कहती रहीl और वो तो मेरे द्वारा उसकी प्रशंसा सुनकर,सकुचाते हुए कहने लगी-अरे मैडम, आप तो व्यर्थ में ही मेरी तारीफ़ कर रही हैं..! पर अब शर्मिंदा तो मैं अपने-आपसे होने लगी,क्योंकि मैंने वेशभूषा और उच्च शिक्षा के साथ व्यक्ति की उच्चता को पैमाना बना लिया थाl लता के सामने अब मैं,अपने-आपको छोटा महसूस करते हुए सोचने लगी-आज के युग में भी लता तो..एकलव्‍यबन गई...पर क्या मैंद्रोणाचार्य` बन पाई…!

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”