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भारत की एकता को बल देने वाला युगांतरकारी फैसला

ललित गर्ग

दिल्ली
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संविधान के अनुच्छेद ३७० पर आया सर्वोच्च न्यायालय का फैसला निर्विवाद रूप से युगांतरकारी, ऐतिहासिक, राष्ट्रीय एकता को मजबूती देने वाला मील का पत्थर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल एक नया अध्याय लिखा, बल्कि भारत की एकता और अखंडता को नई मजबूती भी दी। जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख का पूरा क्षेत्र विकास, सुशासन एवं लोकतांत्रिक दृष्टि से सिरमौर साबित होगा, इसमें सारे संदेहों पर से पर्दा उठ गया है। समूचा राष्ट्र जम्मू-कश्मीर के भारत का अभिन्न हिस्सा बनकर विकास के एक ‘नए युग’ में प्रवेश करने की इस नई सुबह पर हर्षित है। कहा जा सकता है कि, जम्मू-कश्मीर को हासिल विशेष दर्जा समाप्त किए जाने से जुड़े विवाद पर इस फैसले ने एक तरह से पूर्ण विराम लगा दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत के ५ न्यायमूर्तियों की पीठ ने यह फैसला देकर साफ कर दिया है कि अनुच्छेद ३७० एक अस्थाई प्रावधान था। इस विशेष प्रावधान को समाप्त करने के पीछे किसी तरह की दुर्भावना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की मंशा है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस फैसले ने एक पुराने और जटिल विवाद को पीछे छोड़ते हुए जम्मू-कश्मीर को और वहां के लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ने की एक मजबूत, उर्वरा एवं समतामूलक जमीन तैयार की है। उम्मीद की जाए कि सभी पक्ष इस मौके का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल सुनिश्चित करने में अपना पूरा योगदान करेंगे।
आजादी के समय तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व के पास राष्ट्रीय एकता के लिए एक नई शुरुआत करने का विकल्प था, लेकिन इसके बजाय संकीर्ण, अराष्ट्रवादी, स्वार्थी राजनीति जारी रखने के निर्णय के साथ भारत को विघटित, अशांत एवं अलोकतांत्रिक करने की कुचेष्टा की गई। इससे राष्ट्रीय हितों की अनदेखी हुई। किन्हीं राजनीतिक आग्रहों, पूर्वाग्रहों एवं दुराग्रहों के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंकवाद और अलगाववाद की तकलीफें लंबे समय तक झेलनी पड़ी हैं। भारत का एकीकरण ‘एक प्रधान, एक निशान, एक विधान’ के बिना अधूरा था बावजूद एक ही राष्ट्र में २ प्रधान, २ निशान एवं २ विधान की संकीर्ण एवं अराष्ट्रवादी सोच को पनपाने के षडयंत्र आजादी के ७५ वर्षों में होते रहे, लेकिन जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, उसने एवं नरेन्द्र मोदी ने अनुच्छेद-३७० और ३५ ए को निरस्त करने की ठानी और इस लक्ष्य को आखिरकार प्राप्त कर लिया गया। नेहरू युग के दौरान कांग्रेस द्वारा की गई कई ‘ऐतिहासिक भूलों’ में से १ को सुधारने के लिए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किया गया, जिसके बाद श्री मोदी के नेतृत्व में कश्मीर में शांति और समृद्धि लौटी एवं लोगों ने आतंकवाद को खारिज कर दिया है। जम्मू कश्मीर की ऐतिहासिक एवं राजनीतिक भूल को सुधारने के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल में रहते हुए विरोध किया। इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, पर उनके बलिदान से करोड़ों भारतीय कश्मीर मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़े। इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘इंसानियत’, ‘जम्हूरियत’ और ‘कश्मीरियत’ का जो प्रभावी संदेश दिया, वह सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा। जिन्होंने ‘भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण’ का सपना देखा था और जिसके लिए उन्होंने राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ी और यहां तक कि अपने जीवन का बलिदान भी दिया। इन राष्ट्रवादियों के प्रयत्नों का ही परिणाम है कि, आज जम्मू-कश्मीर में एक उजली सुबह हुई है।
जम्मू-कश्मीर की तथाकथित राजनीतिक शक्तियों ने इस अनूठे फैसले का विरोध किया है। यह एक विडंबना ही है कि, ३७० की अन्यायपूर्ण एवं विघटनकारी प्रकृति के बाद भी संकीर्ण राजनीतिक कारणों से यह दुष्प्रचार किया जा रहा था कि, वह तो जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है, ऐसी दुराग्रही शक्तियाँ अलग-थलग रहकर अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियाँ सेंकना चाहती हैं। उनकी नजर में वहां की अवाम के सुख-सुविधाओं एवं जीवन का कोई मूल्य नहीं है, लेकिन अदालत के फैसले के बाद उनकी मंशा पर पानी फिर गया है। न्यायालय ने अपने फैसले में अगले वर्ष सितम्बर तक चुनाव कराने के साथ ही केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को जितनी जल्दी संभव हो, बहाल करने का भी निर्देश दिया। ऐसा किया ही जाना चाहिए, लेकिन तभी, जब वहां से जबरन निकाले गए कश्मीरी हिंदुओं की वापसी का रास्ता साफ हो सके। बीते ४ दशकों में कश्मीर में अत्याचार और दमन के साथ लाखों कश्मीरी हिंदुओं का जो पलायन हुआ और वे अपने ही देश में जिस तरह शरणार्थी बनने को विवश हुए, वह एक ऐसी त्रासदी है, जिसे भूला नहीं जाना चाहिए। चूंकि, फैसले के बाद पाकिस्तान समेत देश विरोधी अन्य शक्तियों का बौखलाना स्वाभाविक है, इसलिए भारत सरकार को सतर्क एवं सावधान रहना होगा। इन उन्मादी ताकतों की कोशिश होगी कि कश्मीर में अंधेरा फैलाए।
यह सुनिश्चित करना सरकार और सभी संवैधानिक संस्थानों का दायित्व है कि, आम देशवासियों की तरह वहां के नागरिकों के भी सभी संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार कायम रहें। तय है कि इस फैसले से धरती के स्वर्ग की आभा पर लगे ग्रहण के बादल छंटेंगे। यहां के बर्फ से ढके पहाड़ और खूबसूरत झीलें पर्यटकों को अधिक आकर्षित करेगी। कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता की वजह से इसे ‘भारत का स्विटजरलैंड’ कहा जाता है। हर किसी का सपना होता है कि, वह चारों तरफ से खूबसूरत वादियों से घिरे हुए जम्मू-कश्मीर की सुंदरता को एक बार तो जरूर देखें। अब तक पर्यटक यहाँ आने से घबराता था, लेकिन अब वह बेहिचक यहाँ आ सकेगा। प्रदूषण रहित यह स्थल एक बार फिर आत्मिक और मानसिक शांति का अनुभव कराएगा। अब कश्मीर में आतंक का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला होगा। आए दिन की हिंसक घटनाओं पर विराम लगा है, अब विकास की गंगा प्रवाहमान होगी। यह रोग पुराना एवं लाइलाज हो गया था, लेकिन मोदी के ठोस प्रयासों के जरिए इसकी जड़ का इलाज हुआ है।

मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के और अधिक विकास के लिए अपने ‘अथक प्रयास’ जारी रखते हुए वहां के लोगों के दिलों में भारत की एकता के लिए विश्वास जगाएगी। वास्तव में देखा जाए तो अब असली लड़ाई कश्मीर में बन्दूक और सन्दूक की है, आतंकवाद और लोकतंत्र की है, अलगाववाद और एकता की है, पाकिस्तान और भारत की है। शांति का अग्रदूत बन रहा भारत एक बार फिर युद्ध-आतंक के जंग की बजाय शांति प्रयासों एवं कूटनीति से पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाते हुए अपने लोगों का अपने ढंग से, आत्मीयता से हृदय परिवर्तन करेगा। पिछले ८ साल में कश्मीर को आतंकमुक्त करने में भी बड़ी सफलता मिली है। बीते साढ़े ३ दशक के दौरान कश्मीर का लोकतंत्र कुछ तथाकथित नेताओं का बंधुआ बनकर गया था, जिन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए जो कश्मीर देश के माथे का ऐसा मुकुट था, उसे डर, हिंसा, आतंक एवं दहशत का मैदान बना दिया। अब सर्वोच्च फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की चिंताओं को समझना, सरकार के कार्यों के माध्यम से आपसी विश्वास का निर्माण करना, स्वस्थ राजनीतिक नेतृत्व को बल देना, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बहाल करना तथा निरंतर विकास को सुनिश्चित करना प्राथमिकता एवं प्रतिबद्धता बननी चाहिए। अब घाटी के लोगों के सपने बीते समय के मोहताज नहीं, बल्कि भविष्य की उजली संभावनाएं हैं।