कुल पृष्ठ दर्शन : 382

You are currently viewing इंसनियत तो सब भेदों से परे

इंसनियत तो सब भेदों से परे

कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
**********************************************************

सत्य,अहिंसा,दया,करुणा,
प्रेम,शान्ति,त्याग का वृक्ष है।
जिस वृक्ष की शाखाएं इन फलों
से लदी,
वो ही हकीकत में इन्सान है।
वरना तो चोला इन्सानों-सा पहन,
दिल में दबा नफरत औऱ द्वेष की चाह
फिरते हैं जीवन के उपवन में,
कितने ही हैवान।
मानव है जिसे है प्रेम और,
करुणा का एहसास।
इंसानियत न बँधी,
किसी जाति-धर्म-भेद में
ये तो सब भेदों से परे है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की,
मिसाल है ये।
जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः,
सर्वे संतु निरामयः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु’ का करता
हो हर दिन जाप,
वही है असली मायने में इन्सान।
जो जीवन में खुद को,
जानने की चाहतों को सजा
लगाता है परमात्मा का ध्यान,
वही है जीव जंतुओं से अलग
बुद्धिमान (इन्सान)।
क्योंकि,एक भक्ति का मार्ग ही है
जिसने इन्सानों को पशुओं से पृथक किया,
वरना प्रजनन से लेकर पालन तक
हर फर्ज तो पशुओं ने भी अदा किया।
दुनिया की रामायण में,
बनकर कभी
शबरी,कभी हनुमान।
जो करता रहे जीवन निर्वाण,
वही है मनुष्य और मनुष्यता की पहचान॥

परिचय-कविता जयेश पनोत का बसेरा महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई स्थित खारकर अली रोड पर है। १ फरवरी १९८४ को क्षिप्रा (देवास-मप्र)में जन्मीं कविता का स्थाई निवास मुम्बई ही है। आपको हिन्दी,इंग्लिश, गुजराती सहित मालवी भाषा का ज्ञान भी है। जिला-ठाणे वासी कविता पनोत ने बीएससी (नर्सिंग-इंदौर,म.प्र.)की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्य क्षेत्र-नर्स एवं नर्सिंग प्राध्यापक का रहा,जबकि वर्तमान में गृहिणी हैं। लेखन विधा-कविता एवं किसी भी विषय पर आलेखन है। १९९७ से लेखन में रत कविता पनोत की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। फिलहाल स्वयं की किताब पर काम जारी है। श्रीमती पनोत के लेखन का उद्देश्य-इस रास्ते अपने-आपसे जुड़े रहना व हिन्दी साहित्य की सेवा करना है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक,कोई एक नहीं, सब अपनी अलग विशेषता रखते हैं। लेखन से जन जागरूकता की पक्षधर कविता पनोत के देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
‘मैं भारत देश की बेटी हूँ,
हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा
हिन्दी मेरी मातृ भाषा,
हिन्द प्रचारक बन चलो,
कुछ सहयोग हम भी बाँटें।

Leave a Reply