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गोद भराई

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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विनीता के विवाह को पूरे ११ साल हो चुके थे,परंतु माँ बनने का सुख उसको मिला ही नहीं। उसके दोनों देवरों की शादी उसके सामने हुई…सालभर में दोनों की गोद में एक-एक बच्चा भगवान ने उनको दे दिया..! रोज ही तकिया गीला करते उसकी रात कटती…!
हालांकि,पति कुछ कहते नहीं ही थे…पर,जब शाम को बाहर से आते ही देवरानियों के बच्चों को लेकर व्यस्त हो जाते,उन्हें खिलाने लगते। तब विनीता का मन बहुत ही कचोटता …!
ऐसा नहीं कि,वो इन बच्चों से प्यार नहीं करती थी..वो तो जान छिड़कती थी…उन पर,किन्तु मन का एक कोना बहुत उदास रहता था…उसका…!
समय पंख लगा कर उड़ रहा था…! इस बीच मंझले देवर का स्थानांतरण दूसरे शहर हो गया। अब घर में छोटे देवर- देवरानी और उनकी छुटकी बेटी और वो और उसकी दुनिया बन गयी…!
अचानक उसे पता चलता कि,छोटी के पाँव फिर से भारी है। मन में एक बार फिर अपनी कमी का अहसास तो हुआ पर,उसने भगवान की इच्छा के आगे हथियार डाल दिये थे…!
भोजन करते-करते अचानक यूँ ही एक दिन देवर ने कहा-“सीमा हम अपना दूसरा बच्चा बड़ी भाभी-भैया को दे देते हैं..! कैसा रहेगा ?? विनीता ने सुना तो वो धक्क से रह गयी। क्या ऐसा होगा ??? मैं सचमुच में किसी बच्चे की माँ की बन सकती हूँ ???”
दूसरे दिन से वो देवरानी की और ज्यादा देखभाल करने लगी। विनीता इतनी खुश थी,मानो वो खुद ही माँ बन रही हो। उसने छुप-छुप कर नए बच्चे के लिए कपड़े पोतड़े सब बना लिए…!
समय आया छोटी देवरानी को बच्चा तो हुआ, किन्तु बच्चा माँ की गोद में ही रहा…देवरानी के उदासीन व्यवहार ने उसका दिल एकदम तोड़ दिया। बची-खुची उम्मीद उसने उन दोनों की बात सुनकर छोड़ दी…जब देवर अपनी पत्नी को समझा रहे थे कि क्या हुआ अगर हम भाभी को बच्चा दे दें तो…!
और देवरानी का कहना कि…-“भई बच्चा तो घर में ही रहेगा मेरे पास रहे या उनके…मैं पूरा-पूरा अपने बच्चे को नई दे सकती…बस!”
पटाक्षेप हो गया उसके माँ बनने के सपने का भी…!
कुछ दिनों बाद फिर खबर आई कि,मंझली देवरानी भी माँ बनने वाली है..फोन पर खूब बधाई दी विनीता ने…! मन बहुत रोया उसका,पर ईश्वर की इच्छा के आगे भला क्या हो सकता है…?
एक रात खबर आई मंझली के बेटा हुआ है…दरअसल,मंझली देवरानी को इस बार कुछ समस्या होने के कारण चिकित्सा ने यात्रा करने से मना कर दिया था…! तो वो उन लोगों ने नौकरी वाली शहर में ही प्रसूति करवाने का फैसला कर लिया था…! रात को फोन पर देवर ने कहा-“भाभी आप सबको लेकर आ जाइए,अगले हफ्ते समारोह रख रहे हैं बच्चे का…!”
मन ही मन रोते-रोते उसने यात्रा पूरी की। छोटा देवर,पति,सास सब थे साथ में,बस वो किसी के साथ नहीं थी…!” मेरा जीवन तो निरर्थक हो गया भगवान तुमने मेरी कभी नहीं सुनी…! शाम तक वो सबके साथ मंझले के घर पर पहुंच चुकी थी…! लम्बा-चौड़ा आयोजन खूब लोग-बाग गहमा-गहमी बहुत, लेकिन उससे कोई ठीक से बात तक नहीं कर रहा था…कुछ औरतें कानाफूसी भी कर रही थी…पति भी आकर काम में रम गए थे वो ही निठल्ली-सी बैठी थी…! तभी एक स्त्री ने कहा-‘आप विनीता जी हैं ???
‘जी हाँ,चलिए आप।’ कह कर वो औरत विनीता को एक कमरे में ले गयी…। वहां मंझली देवरानी बच्चे के साथ लेटी थी… उलाहना देते हुए बोली-“दीदी कहां हो आप! शाम को हमारा गोद भराई का समारोह है और आप ऐसे मुँह उतार कर बैठी हो…चलो पहले आप तैयार हो जाइए अच्छे से फिर बच्चे को सम्भालिए…।”
रुआंसी-सी विनीता तैयार होने उठी तो साथ आई महिला ने कहा-“आज चलिए,मैं आपको तैयार कर देती हूँ…। विनीता को बाद में पता चला कि वो सौंन्दर्या विशेषज्ञा थी…!
हल्का मेक-अप,आँखों में काजल,बालों में ढेर सारा गजरा,लाल बनारसी साड़ी…विनीता का सौंदर्य देखते ही बन रहा था,किंतु आँखों में झुंझलाहट भी थी…गोद में बच्चा इसके आया है,और मुझे इन लोग क्यों इतना मेक-अप कर रहे हैं…??
फिरहाल में जहां कार्यक्रम होना था सब इकठ्ठे हुए…!
बच्चे को मंझली देवरानी एक बार भी उसको हाथ लगाने नहीं दी थी…! बस रोने-रोने को हुई जा रही थी विनीता…तभी मंझले देवर ने सबको शांत करते हुए कहा…-“आज का यह आयोजन मेरे बड़े भैया और भाभी के प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति के उपलक्ष्य में रखा गया है…आप सब श्रीमती विनीता एवं राजेश जी को और नवजात शिशु को अपना आशीर्वाद देकर हमें अनुग्रहित करें…।”
और मंझली ने आकर विनीता को उलाहना देते हुए कहा…-“लो भी दीदी,अब अपने बच्चे को गोद में कबसे लिए-लिए फिर रही हूँ…थक गई हूँ भई मैं…!!!!
और विनीता की आँखों के आँसू,राजेश की बाँहों का सहारा और उन दोनों के बीच नन्हा-सा राजकुमार सब मानो गड्डम-गड्ड हुए जा रहे थे…!!
क्या मैं सचमुच माँ बन गई ???
तालियों का शोर..सबके मुस्कुराते चेहरे.. मंझले देवर-देवरानी की पुलकित मुस्कान यही तो कह रही थी…कि मैं माँ बन गयी…।

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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